भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दरवाज़ा / राजा पुनियानी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजा पुनियानी |अनुवादक= कालिका प्...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=
 
}}
 
}}
 +
{{KKCatNepaliRachna}}
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}
 
<poem>
 
<poem>

21:17, 25 दिसम्बर 2014 के समय का अवतरण

यूँ तो देखने के लिए
पत्रिकाएँ हैं
वाचाल अख़बार है
दिमाग सड़ाने वाला टेलीविजन है

देखने के लिए कम-से-कम
दीवार पर टँगा टकटकी लगाए कैलेण्डर है
देखने के लिए
बूढ़ी माँ का खगोल ललाट है
छोटी बेटी की छोटी-सी अनन्त सूरत है
एक खिड़की आकाश
एक किरणपुंज धूप
और एक आईना चाँद है

वैसे खाली दीवार, गहरे कुएँ और टमाटर के अकेले खेत को
ताक सकती थी वह
चिन्ताओं से खचाखच भरे मन से बाहर
अकेली कहानीनुमा खिड़की को
खिड़की से बाहर उस बेख़बर पेड़ को
पेड़ से आगे शहर को जोड़ती कच्ची सड़क को भी
ताक सकती थी वह

लेकिन जाने क्यों
वह तो ताकती रहती है
दरवाज़े को ही

उसी कच्ची सड़क से गुज़रते परदेशी ने
कभी उससे कहा होगा
उसी दरवाज़े से लौट आएगा वह

मूल नेपाली से अनुवाद : कालिका प्रसाद सिंह