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धूप की क़िस्में</div>
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
  
 
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रचनाकार: [[राधावल्लभ त्रिपाठी]]
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
 
</div>
 
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<div style="border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; line-height: 0; margin: 0 auto; min-height: 590px; padding: 20px 20px 20px 20px; white-space: pre;"><div style="float:left; padding:0 25px 0 0">[[चित्र:Kk-poem-border-1.png|link=]]</div>
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
धूप की कई क़िस्में होती हैं
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
गुनगुनी धूप
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अपरिचित पास आओ
गुलाबी धूप
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नम धूप
+
तीखी धूप
+
बदन सहलाती मुलायम धूप
+
  
धूप के कई रंग होते हैं
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आँखों में सशंक जिज्ञासा
सुनहरी धूप
+
मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
हल्दी के रंग की पीली धूप
+
जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
पेड़ों से छन कर आती हरी धूप
+
स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
 +
हिलो-मिलो फिर एक डाल के
 +
खिलो फूल-से, मत अलगाओ
  
सबसे अच्छी धूप --
+
सबमें अपनेपन की माया
हाड़ कँपाता जाड़ा झेलते
+
अपने पन में जीवन आया
ग़रीब का तन
+
गरमाने के लिए
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घने कोहरे को भेद कर
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बाहर आने को आकुल धूप...
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया