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"राही / लक्ष्मीप्रसाद देवकोटा / सुमन पोखरेल" के अवतरणों में अंतर

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किस मंदिर को जाओगे राही, किस मंदिर पे जाना है?
 
किस मंदिर को जाओगे राही, किस मंदिर पे जाना है?
 
किस सामान से पूजा करना, साथ कैसे ले जाना है?
 
किस सामान से पूजा करना, साथ कैसे ले जाना है?
मानवों के कंधे चढकर, किस स्वर्ग को पाना है?
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मानवों के कंधे चढ़कर, किस स्वर्ग को पाना है?
  
अस्थियों के सुन्दर खम्भे, मांसपिंड के दीवारे
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अस्थियों के सुंदर खंभे, मांसपिंड की दीवारें,
मस्तिष्क का ये सुनहरा छत, इंद्रियों के दरवाजे
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मस्तिष्क का यह सुनहरा छत, इंद्रियों के दरवाजे,
नस-नदी के तरल तरंगें खुद एक मंदिर अपार
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नस-नदी की तरल तरंगें खुद एक मंदिर अपार,
 
किस मंदिर को जाओगे राही, किस मंदिर के दर?
 
किस मंदिर को जाओगे राही, किस मंदिर के दर?
  
दिल का सुन्दर सिंहासन पे है जगदीश्वर का राज
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दिल के सुंदर सिंहासन पर है जगदीश्वर का राज,
चेतन का यह ज्योति हिरण्य, उस का सर का ताज  
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चेतन की यह ज्योति हिरण्य, उसका सिर का ताज,
शरीर का ये सुन्दर मन्दिर विश्वक्षेत्र के माँझ
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शरीर का यह सुंदर मंदिर विश्व क्षेत्र के मांझ।
  
ईश्वर है अंदर, बाहरी आँखों से ढूँढते फिरे हो कौन सा पुर?
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ईश्वर है अंदर, बाहरी आंखों से ढूंढते फिरे हो कौन सा पुर?
रहता है ईश्वर गहराइयों में, सतहों पे बहते हो कितनी दूर?
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रहता है ईश्वर गहराइयों में, सतहों पर बहते हो कितनी दूर?
ढूँढते हो? हृदय उबा लो ज्योत जला के भरपूर।  
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ढूंढते हो? हृदय को सहलाओ, ज्योति जला के भरपूर।
  
दोस्त राही, सर-ए-सडकों पे चलता है ईश्वर साथ-साथ
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दोस्त राही, सर-ए-सड़कों पर चलता है ईश्वर साथ-साथ,
चुमता है ईश्वर काम सुनहरा कर रहा इंसानी हाथ
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चुमता है ईश्वर काम सुनहरा कर रहा इंसानी हाथ,
छूता है वो अपने तिलस्मी हाथों से सेवकों के माथ
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छूता है वह अपने तिलस्मी हाथों से सेवकों के माथ।
  
सड़क किनारे गाता है वो चिड़ियों के तानों में  
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सड़क किनारे गाता है वह चिड़ियों के तानों में,
बोलता है ईश्वर इंसानों के दुःख दर्द के गानों में
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बोलता है ईश्वर इंसानों के दुःख-दर्द के गानों में,
दर्शन किन्तु देता नहीं वो, चर्म-चक्षु से कानों में  
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दर्शन किन्तु देता नहीं वह, चर्म-चक्षु से कानों में,
 
किस मंदिर को जाओगे राही, किस नवदेश के वीरानों में?
 
किस मंदिर को जाओगे राही, किस नवदेश के वीरानों में?
  
वापस आओ, जाओ पकडो इंसानों के पाँव को
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वापस आओ, जाओ पकड़ो इंसानों के पांव को,
मरहम लगा लो आर्तों के चहराते हुए घाव को
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मरहम लगा लो आर्तों के चहरे पर चढ़ते हुए घाव को,
मानव हो के हँसा लो यह ईश्वर का दिव्य मुहार को
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मानव हो के हंसाओ यह ईश्वर का दिव्य मुखार को।
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''इस कविता का मूल नेपाली-''
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'''[[यात्री / लक्ष्मीप्रसाद देवकोटा]]'''
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17:50, 1 सितम्बर 2024 के समय का अवतरण

किस मंदिर को जाओगे राही, किस मंदिर पे जाना है?
किस सामान से पूजा करना, साथ कैसे ले जाना है?
मानवों के कंधे चढ़कर, किस स्वर्ग को पाना है?

अस्थियों के सुंदर खंभे, मांसपिंड की दीवारें,
मस्तिष्क का यह सुनहरा छत, इंद्रियों के दरवाजे,
नस-नदी की तरल तरंगें खुद एक मंदिर अपार,
किस मंदिर को जाओगे राही, किस मंदिर के दर?

दिल के सुंदर सिंहासन पर है जगदीश्वर का राज,
चेतन की यह ज्योति हिरण्य, उसका सिर का ताज,
शरीर का यह सुंदर मंदिर विश्व क्षेत्र के मांझ।

ईश्वर है अंदर, बाहरी आंखों से ढूंढते फिरे हो कौन सा पुर?
रहता है ईश्वर गहराइयों में, सतहों पर बहते हो कितनी दूर?
ढूंढते हो? हृदय को सहलाओ, ज्योति जला के भरपूर।

दोस्त राही, सर-ए-सड़कों पर चलता है ईश्वर साथ-साथ,
चुमता है ईश्वर काम सुनहरा कर रहा इंसानी हाथ,
छूता है वह अपने तिलस्मी हाथों से सेवकों के माथ।

सड़क किनारे गाता है वह चिड़ियों के तानों में,
बोलता है ईश्वर इंसानों के दुःख-दर्द के गानों में,
दर्शन किन्तु देता नहीं वह, चर्म-चक्षु से कानों में,
किस मंदिर को जाओगे राही, किस नवदेश के वीरानों में?

वापस आओ, जाओ पकड़ो इंसानों के पांव को,
मरहम लगा लो आर्तों के चहरे पर चढ़ते हुए घाव को,
मानव हो के हंसाओ यह ईश्वर का दिव्य मुखार को।

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इस कविता का एक और अनुवाद-
मुसाफिर / लक्ष्मीप्रसाद देवकोटा / सुमन पोखरेल
यस कविताको अर्को एउटा अनुवाद-
मुसाफिर / लक्ष्मीप्रसाद देवकोटा / सुमन पोखरेल

इस कविता का मूल नेपाली-
यात्री / लक्ष्मीप्रसाद देवकोटा
यस कविताको मूल नेपाली-
यात्री / लक्ष्मीप्रसाद देवकोटा