भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पाप लाग्छ / लक्ष्मीप्रसाद देवकोटा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लक्ष्मीप्रसाद देवकोटा |अनुवादक= |...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=लक्ष्मीप्रसाद देवकोटा | |रचनाकार=लक्ष्मीप्रसाद देवकोटा | ||
|अनुवादक= | |अनुवादक= | ||
− | |संग्रह= | + | |संग्रह=सुनको बिहान |
}} | }} | ||
{{KKCatNepaliRachna}} | {{KKCatNepaliRachna}} |
14:21, 21 मई 2017 के समय का अवतरण
नटिप्नु हेर कोपिला!
नचुँड्नु पाप लाग्दछ।
नच्यात्नु फूल नानि हो!
दया र धर्म भाग्दछ।।
नछोप्नु है चरी बरी
सराप आँसु लाग्दछ।
नमार्नु जन्तु है कुनै
बसेर काल जाग्दछ।।
न घाउ चोट लाउनू
सडेर चित्त पाक्दछ।
धूलो नफेक्नु नानि हो!
उडेर भित्र ढाक्दछ।।
हिलो नखेल्नु फोहरी
खराब दाग लाग्दछ।
न चित्त है दुखाउनु
डसेर आँसु बग्दछ।।
बनेर फूल झैं सधैं
हँसाउनू सुवास दी।
सधैं रमाउनू जगत्
रमेर नित्य आश दी।।
जताततै छ ईश रे
छ सुन्नु त्यो विचार रे।
छकाउने लुकाउने
नराख भाव क्यै गरे!