भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जागो प्यारे / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 5 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
}}
 
}}
 
{{KKCatBaalKavita}}
 
{{KKCatBaalKavita}}
 +
{{KKPrasiddhRachna}}
 
<poem>
 
<poem>
उठो लाल अब आँखें खोलो,
+
''कई जगहों पर यह रचना [[द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी|द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी जी]] या [[सोहनलाल द्विवेदी|सोहनलाल द्विवेदी जी]] की बताई जाती है; जबकि वास्तव में यह रचना '''अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’''' जी की है।''
पानी लाई हूँ, मुँह धो लो ।
+
  
बीती रात कमल-दल फूले,
+
उठो लाल अब आँखे खोलो
उनके ऊपर भौंरे झूले ।
+
पानी लाई हूँ मुँह धो लो
  
चिड़ियाँ चहक उठी पेड़ों पर,
+
बीती रात कमल दल फूले
बहने लगी हवा अति सुन्दर ।
+
उनके ऊपर भंवरे डोले
  
नभ में न्यारी लाली छाई,
+
चिड़िया चहक उठी पेड़ पर
धरती ने प्यारी छवि पाई ।
+
बहने लगी हवा अति सुंदर
  
भोर हुआ सूरज उग आया,
+
नभ में न्यारी लाली छाई
जल में पड़ी सुनहरी छाया ।
+
धरती ने प्यारी छवि पाई
  
ऐसा सुन्दर समय न खोओ,
+
भोर  हुआ सूरज उग आया
मेरे प्यारे अब मत सोओ
+
जल में पड़ी सुनहरी छाया
 +
 
 +
ऐसा सुंदर समय न खोओ  
 +
मेरे प्यारे अब मत सोओ
 +
 
 +
'''''--- साभार: [[सरस्वती_पत्रिका|सरस्वती]], जून 1915'''''
 
</poem>
 
</poem>

13:53, 15 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण

कई जगहों पर यह रचना द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी जी या सोहनलाल द्विवेदी जी की बताई जाती है; जबकि वास्तव में यह रचना अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ जी की है।

उठो लाल अब आँखे खोलो
पानी लाई हूँ मुँह धो लो

बीती रात कमल दल फूले
उनके ऊपर भंवरे डोले

चिड़िया चहक उठी पेड़ पर
बहने लगी हवा अति सुंदर

नभ में न्यारी लाली छाई
धरती ने प्यारी छवि पाई

भोर हुआ सूरज उग आया
जल में पड़ी सुनहरी छाया

ऐसा सुंदर समय न खोओ
मेरे प्यारे अब मत सोओ

--- साभार: सरस्वती, जून 1915