भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हे मेरी तुम !. / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल
 
|रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल
|संग्रह=फूल नहीं रंग बोलते हैं-1 / केदारनाथ अग्रवाल
+
|संग्रह=फूल नहीं, रंग बोलते हैं-1 / केदारनाथ अग्रवाल
 
}}
 
}}
  

09:17, 28 फ़रवरी 2008 के समय का अवतरण




हे मेरी तुम !

जब आषाढ़ी बादल आएँ

आसमान में और हवा में

हाथी धायें

ऊँचे-ऊँचे सूँड़ उठाएँ

और झमाझम पानी बरसे

तब तुम उस नव बरसे जल में,

अपने तन पर लाल लपेटे,

अपनी छत पर ख़ूब नहाना

और बाद में

उन्हें आँख के

खिले कमल के फूल चढ़ाना !

यह स्वभाव है सुधी जनों का

और घनों का,

वह प्रसन्न होते हैं

रमणी के अर्पण से !