भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दरद भायला / राजू सारसर ‘राज’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजू सारसर ‘राज’ |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=राजू सारसर ‘राज’
 
|रचनाकार=राजू सारसर ‘राज’
 
|अनुवादक=
 
|अनुवादक=
|संग्रह=म्हारै पांती रा सुपना / राजू सारसर ‘राज’
+
|संग्रह=थार-सप्तक-1 / ओम पुरोहित ‘कागद’ ; म्हारै पांती रा सुपना / राजू सारसर ‘राज’  
 
}}
 
}}
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}

18:13, 9 जून 2017 के समय का अवतरण

संवेदणा बिहूणी
सीला माथै
रगड़का खांवता
बांसती आखर
कठै कोर सकै
सिन्दूरी सुपना
जका रात में
भरी नींद आवैं
जागती आंख्या में
फगत रड़कै।
सामी छाती
आभै रो सतरंगी
लै’रियौ चिर
इन्नर धणख ई
जद डबड़कां में
बदळ जावै।
नैणां भर नींर
मांयली पीड़
बा’रै परगटा सकै
खुद नीं मुळकै
पण लोकां मै हंसावै।
दरद रा डीगा डूंगर,
छानै नीं रवै।
सुख नै अंवेर’र
गोज में धरल्यां
बांथ में भरल्यां
धन है दरद !