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चप्पल पर भात / वीरेन डंगवाल
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11:41, 11 अप्रैल 2012
|संग्रह=दुष्चक्र में सृष्टा / वीरेन डंगवाल
}}
<poem>
किस्सा यों हुआ
कि खाते समय चप्पल पर भात के कुछ कण
::::गिर गए थे
जो जल्दबाज़ी में दिखे नहीं ।
फिर तो काफ़ी देर
तलुओं पर उस चिपचिपाहट की ही भेंट
::::चढ़ी रहीं
तमाम महान चिन्ताएँ ।
</poem>
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