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चप्पल पर भात / वीरेन डंगवाल

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|संग्रह=दुष्चक्र में सृष्टा / वीरेन डंगवाल
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     <poem>
किस्सा यों हुआ
 
कि खाते समय चप्पल पर भात के कुछ कण
 
::::गिर गए थे
 
जो जल्दबाज़ी में दिखे नहीं ।
 
फिर तो काफ़ी देर
 
तलुओं पर उस चिपचिपाहट की ही भेंट
 
::::चढ़ी रहीं
 
तमाम महान चिन्ताएँ ।
</poem>
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