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"कत दिन मधुपुर जायब, कत दिन आयब हे / मगही" के अवतरणों में अंतर

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ए राजा, कत दिन मधुपुर छायब, <ref>छाओगे, रहोगे</ref> मोहिं के बिसरायब हे।।1।।
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छव महीना मधुपुर जायब, बरिस दिन आयब हे।
 
छव महीना मधुपुर जायब, बरिस दिन आयब हे।
धनियाँ, बारह बरिस मधुपुर छायब, तोहंे नहिं बिसरायब हे।।2।।
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ए राजा, पढ़ल पंडित केर <ref>की</ref> धियवा, तीनों कुल रखलन <ref>पितृकुल, मातृकुल, ननिहाल, तथा पतिकुल की मर्यादा रखनेवाली</ref> हे।।4।।
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ए ललना, अम्माँ बोलाइ भेद पुछलन, कवन रँग धनि मोरा हे।।5।।
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ए ललना, अम्माँ बोलाइ भेद पुछलन, कवन रँग धनि मोरा हे॥5॥
 
तोर धनि हँथवा के फरहर, मुँहवा के लायक हे।
 
तोर धनि हँथवा के फरहर, मुँहवा के लायक हे।
ए बबुआ, पढ़ल पंडित केर धियवा, तीनों कुल रखलन हे।।6।।
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ए बबुआ, पढ़ल पंडित केर धियवा, तीनों कुल रखलन हे॥6॥
उहवाँ से गनिया उठवलन, ओसरा <ref>ओसारा; बरामदा, उपशाला</ref> बीचे गनि ढारे हे।
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उहवाँ से गनिया उठवलन, ओसरा<ref>ओसारा; बरामदा, उपशाला</ref> बीचे गनि ढारे हे।
ए ललना, भउजी बोलाइ भेद पुछलन, धनि मोरा कवन रँग हे।।7।।
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ए ललना, भउजी बोलाइ भेद पुछलन, धनि मोरा कवन रँग हे॥7॥
 
तोरो धनि हँथवा के फरहर, मुँहवा के लायक हे।
 
तोरो धनि हँथवा के फरहर, मुँहवा के लायक हे।
बाबू, पढ़ल पंडित केर धियवा, तीनों कुल रखलन हे।।8।।
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बाबू, पढ़ल पंडित केर धियवा, तीनों कुल रखलन हे॥8॥
 
उहवाँ से गनिया उठवलन, सेजिया बीचे गनि ढारे हे।
 
उहवाँ से गनिया उठवलन, सेजिया बीचे गनि ढारे हे।
ए ललना, धनियाँ बोलाइ भेद पुछलन, तुहूँ धनि कवन रँग हे।।9।।
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ए ललना, धनियाँ बोलाइ भेद पुछलन, तुहूँ धनि कवन रँग हे॥9॥
अँगना मोरा लेखे <ref>लिए</ref> रनबन <ref>अरणय, वन</ref> दुअरा कुँजनबन <ref>कांटोवाला झाड़ीदार सघन वन</ref>
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ए राजा, सेजिया पर लोटे काली नगिनिया, रउरे <ref>आपके</ref> चरन बिनु हे।।10।।
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13:57, 11 जून 2015 के समय का अवतरण

मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

कत<ref>कितना</ref> दिन मधुपुर जायब, कत दिन आयब हे।
ए राजा, कत दिन मधुपुर छायब,<ref>छाओगे, रहोगे</ref> मोहिं के बिसरायब हे॥1॥
छव महीना मधुपुर जायब, बरिस दिन आयब हे।
धनियाँ, बारह बरिस मधुपुर छायब, तोहंे नहिं बिसरायब हे॥2॥
बारहे बरिस पर राजा लउटे<ref>लौटे</ref> दुअरा<ref>द्वार,रवाजा</ref> बीचे गनि<ref>पटसन के मोटे टाट की बनी हुई बोरी या रुपये रखने का जालीदार थैला; गँजिया। गनि-गोणी(संस्कृ.); मिला.- गनी, कहावत-‘कूदे गोन न कूदे तंगी</ref> ढारे<ref>ढालता है, उझलता है</ref> हे।
ए ललना, चेरिया<ref>चेटी, नौकरानी</ref> बोलाइ भेद पूछे, धनि मोर कवन रँग हे॥3॥
तोर धनि हँथवा के फरहर,<ref>फुरतीला</ref>, मुँहवा के लायक<ref>योग्य</ref> हे।
ए राजा, पढ़ल पंडित केर<ref>की</ref> धियवा, तीनों कुल रखलन<ref>पितृकुल, मातृकुल, ननिहाल, तथा पतिकुल की मर्यादा रखनेवाली</ref> हे॥4॥
उहवाँ<ref>वहाँ, उस जगह</ref> से गनिया उठवलन, अँगना बीचे गनि ढारे हे।
ए ललना, अम्माँ बोलाइ भेद पुछलन, कवन रँग धनि मोरा हे॥5॥
तोर धनि हँथवा के फरहर, मुँहवा के लायक हे।
ए बबुआ, पढ़ल पंडित केर धियवा, तीनों कुल रखलन हे॥6॥
उहवाँ से गनिया उठवलन, ओसरा<ref>ओसारा; बरामदा, उपशाला</ref> बीचे गनि ढारे हे।
ए ललना, भउजी बोलाइ भेद पुछलन, धनि मोरा कवन रँग हे॥7॥
तोरो धनि हँथवा के फरहर, मुँहवा के लायक हे।
बाबू, पढ़ल पंडित केर धियवा, तीनों कुल रखलन हे॥8॥
उहवाँ से गनिया उठवलन, सेजिया बीचे गनि ढारे हे।
ए ललना, धनियाँ बोलाइ भेद पुछलन, तुहूँ धनि कवन रँग हे॥9॥
अँगना मोरा लेखे<ref>लिए</ref> रनबन<ref>अरणय, वन</ref> दुअरा कुँजनबन<ref>कांटोवाला झाड़ीदार सघन वन</ref>
ए राजा, सेजिया पर लोटे काली नगिनिया, रउरे<ref>आपके</ref> चरन बिनु हे॥10॥

शब्दार्थ
<references/>