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18:58, 29 जनवरी 2008 के समय का अवतरण
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मेखला से बंध दुकूल सजे सघन मनहर हुए हैं,
अलसभार नितम्ब माँसल-बिम्ब से कंपित हुए हैं
हार के आभरण में स्तन चन्दनांकित हिल रहे हैं
शुद्ध स्नान कषायगंधित अंग, अलकें झूम हँसतीं
रूप की ज्योत्स्ना बिछा कर ग्रीष्म का अवसाद हरतीं
योषिताएँ कामियों को तृप्ति देती हैं मधुतर
प्रिये ! आया ग्रीष्म खरतर !