भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"उड़ गए बालो-पर उड़ानों में / देवी नांगरानी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह=चराग़े-दिल / देवी नांगरानी | |संग्रह=चराग़े-दिल / देवी नांगरानी | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatGhazal}} | |
− | + | <poem> | |
उड़ गए बालो-पर उड़ानों में | उड़ गए बालो-पर उड़ानों में | ||
− | + | सर पटकते हैं आशियानों में| | |
− | सर पटकते हैं आशियानों में | + | |
− | + | ||
− | + | ||
जल उठेंगे चराग़ पल भर में | जल उठेंगे चराग़ पल भर में | ||
− | + | शिद्दतें चाहिये तरानों में| | |
− | शिद्दतें चाहिये तरानों में | + | |
− | + | ||
नज़रे बाज़ार हो गए रिश्ते | नज़रे बाज़ार हो गए रिश्ते | ||
− | + | घर बदलने लगे दुकानों में| | |
− | घर बदलने लगे दुकानों में | + | |
− | + | ||
− | + | ||
धर्म के नाम पर हुआ पाखंड | धर्म के नाम पर हुआ पाखंड | ||
− | + | लोग जीते हैं किन गुमानों में| | |
− | लोग जीते हैं किन गुमानों में | + | |
− | + | ||
− | + | ||
कट गए बालो-पर, मगर हमने | कट गए बालो-पर, मगर हमने | ||
− | + | नक्श छोड़े हैं आसमानों में| | |
− | नक्श छोड़े हैं आसमानों में | + | |
− | + | ||
− | + | ||
वलवले सो गए जवानी के | वलवले सो गए जवानी के | ||
− | + | जोश बाक़ी नहीं जवानों में| | |
− | जोश बाक़ी नहीं जवानों में | + | |
− | + | ||
− | + | ||
बढ़ गए स्वार्थ इस क़दर ‘देवी’ | बढ़ गए स्वार्थ इस क़दर ‘देवी’ | ||
− | + | एक घर बंट गया घरानों में| | |
− | एक घर बंट गया घरानों में | + | </poem> |
11:24, 11 अप्रैल 2014 के समय का अवतरण
उड़ गए बालो-पर उड़ानों में
सर पटकते हैं आशियानों में|
जल उठेंगे चराग़ पल भर में
शिद्दतें चाहिये तरानों में|
नज़रे बाज़ार हो गए रिश्ते
घर बदलने लगे दुकानों में|
धर्म के नाम पर हुआ पाखंड
लोग जीते हैं किन गुमानों में|
कट गए बालो-पर, मगर हमने
नक्श छोड़े हैं आसमानों में|
वलवले सो गए जवानी के
जोश बाक़ी नहीं जवानों में|
बढ़ गए स्वार्थ इस क़दर ‘देवी’
एक घर बंट गया घरानों में|