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"घर सास के आगे / वचनेश" के अवतरणों में अंतर

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घर सास के आगे लजीली बहू रहे घूँघट काढ़े जो आठौ घड़ी।
 
घर सास के आगे लजीली बहू रहे घूँघट काढ़े जो आठौ घड़ी।
 
 
लघु बालकों आगे न खोलती आनन वाणी रहे मुख में ही पड़ी।
 
लघु बालकों आगे न खोलती आनन वाणी रहे मुख में ही पड़ी।
 
 
गति और कहें क्या स्वकन्त के तीर गहे गहे जाती हैं लाज गड़ी।
 
गति और कहें क्या स्वकन्त के तीर गहे गहे जाती हैं लाज गड़ी।
 
 
पर नैन नचाके वही कुँजड़े से बिसाहती केला बजार खडी।।
 
पर नैन नचाके वही कुँजड़े से बिसाहती केला बजार खडी।।
 
 
-(परिहास, पृ०-३०)वचनेश
 
-(परिहास, पृ०-३०)वचनेश
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23:12, 7 जून 2021 के समय का अवतरण

घर सास के आगे लजीली बहू रहे घूँघट काढ़े जो आठौ घड़ी।
लघु बालकों आगे न खोलती आनन वाणी रहे मुख में ही पड़ी।
गति और कहें क्या स्वकन्त के तीर गहे गहे जाती हैं लाज गड़ी।
पर नैन नचाके वही कुँजड़े से बिसाहती केला बजार खडी।।
-(परिहास, पृ०-३०)वचनेश