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"उठ जाग मुसाफिर भोर भई / भजन" के अवतरणों में अंतर

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('कविता कोश' में 'संगीत'(सम्पादक-काका हाथरसी) नामक पत्रिका के जुलाई 1945 के अंक से)
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उठ जाग मुसाफिर भोर भई, अब रैन कहाँ जो तू सोवत है  
 
उठ जाग मुसाफिर भोर भई, अब रैन कहाँ जो तू सोवत है  
 
 
जो जागत है सो पावत है, जो सोवत है वो खोवत है  
 
जो जागत है सो पावत है, जो सोवत है वो खोवत है  
 
 
  
 
खोल नींद से अँखियाँ जरा और अपने प्रभु से ध्यान लगा  
 
खोल नींद से अँखियाँ जरा और अपने प्रभु से ध्यान लगा  
 
 
यह प्रीति करन की रीती नहीं प्रभु जागत है तू सोवत है.... उठ ...
 
यह प्रीति करन की रीती नहीं प्रभु जागत है तू सोवत है.... उठ ...
 
 
  
 
जो कल करना है आज करले जो आज करना है अब करले   
 
जो कल करना है आज करले जो आज करना है अब करले   
 
 
जब चिडियों ने खेत चुग लिया फिर पछताये क्या होवत है... उठ ...
 
जब चिडियों ने खेत चुग लिया फिर पछताये क्या होवत है... उठ ...
 
 
  
 
नादान भुगत करनी अपनी ऐ पापी पाप में चैन कहाँ  
 
नादान भुगत करनी अपनी ऐ पापी पाप में चैन कहाँ  
 
 
जब पाप की गठरी शीश धरी फिर शीश पकड़ क्यों रोवत है... उठ ....
 
जब पाप की गठरी शीश धरी फिर शीश पकड़ क्यों रोवत है... उठ ....
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12:14, 21 अप्रैल 2014 के समय का अवतरण

उठ जाग मुसाफिर भोर भई, अब रैन कहाँ जो तू सोवत है
जो जागत है सो पावत है, जो सोवत है वो खोवत है

खोल नींद से अँखियाँ जरा और अपने प्रभु से ध्यान लगा
यह प्रीति करन की रीती नहीं प्रभु जागत है तू सोवत है.... उठ ...

जो कल करना है आज करले जो आज करना है अब करले
जब चिडियों ने खेत चुग लिया फिर पछताये क्या होवत है... उठ ...

नादान भुगत करनी अपनी ऐ पापी पाप में चैन कहाँ
जब पाप की गठरी शीश धरी फिर शीश पकड़ क्यों रोवत है... उठ ....