"बुलडोजर के बाद / रति सक्सेना" के अवतरणों में अंतर
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रति सक्सेना }} चीते की तरह लपकते हुए, उसने <br> शिकार को इस ...) |
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=रति सक्सेना | |रचनाकार=रति सक्सेना | ||
}} | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
+ | <poem> | ||
+ | चीते की तरह लपकते हुए, उसने | ||
+ | शिकार को इस तरह चबाया कि | ||
+ | न चीख सुनाई दी, न ही रुदन | ||
+ | बस एक घुरघुराहट, | ||
+ | मरती हुई साँसो से | ||
− | + | अब उसके दाँतो के बीच है | |
− | + | साबुत कि साबुत मकान | |
− | + | जिसे बेच कर | |
− | + | अभी-अभी गया था एक परिवार | |
− | + | ||
− | + | आवाजों के गुच्छे में | |
− | + | अचानक सुनाई देती है | |
− | + | रसोई घर के बर्तनो की छनछनाहट | |
− | + | कड़ाई में चलती करछुल | |
+ | कूकर की सीटी | ||
+ | और सब्जियों की नीन्द | ||
− | + | यह आवाज शायद उनके | |
− | + | शयन कक्ष की ही होगी | |
− | + | यहाँ टूटती चूड़ियाँ हैं | |
− | + | तकिये की खसखसाहटें है | |
− | + | और भी बहुत कुछ | |
− | और | + | जिसे बयान नहीं किया जा सकता |
− | + | बच्चों के कमरे में | |
− | + | कच्ची अमिया सी खिलखिलाहटें हैं | |
− | + | झरबेरी सी कनफुसियाँ हैं | |
− | + | और भी बहुत कुछ ऐसा | |
− | और भी बहुत कुछ | + | जिसे हम सुनना नहीं चाहते |
− | जिसे | + | |
− | + | घर को पूरा कि पूरा निगल | |
− | + | अब थक कर बैठा ही है | |
− | + | कि सारी कि सारी आवाजें | |
− | + | उसके मुँह से निकल कर | |
− | + | मेरी खिड़की पर आ बैठीं | |
− | + | "घर के साथ ना जाने क्या | |
− | + | बेच गए, जाने वाले" | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | " घर के साथ ना जाने क्या | + | |
− | बेच गए, जाने वाले" | + | |
मैंने आवाजों के लिए दरवाजा खोल दिया। | मैंने आवाजों के लिए दरवाजा खोल दिया। | ||
+ | </poem> |
17:44, 29 अगस्त 2013 के समय का अवतरण
चीते की तरह लपकते हुए, उसने
शिकार को इस तरह चबाया कि
न चीख सुनाई दी, न ही रुदन
बस एक घुरघुराहट,
मरती हुई साँसो से
अब उसके दाँतो के बीच है
साबुत कि साबुत मकान
जिसे बेच कर
अभी-अभी गया था एक परिवार
आवाजों के गुच्छे में
अचानक सुनाई देती है
रसोई घर के बर्तनो की छनछनाहट
कड़ाई में चलती करछुल
कूकर की सीटी
और सब्जियों की नीन्द
यह आवाज शायद उनके
शयन कक्ष की ही होगी
यहाँ टूटती चूड़ियाँ हैं
तकिये की खसखसाहटें है
और भी बहुत कुछ
जिसे बयान नहीं किया जा सकता
बच्चों के कमरे में
कच्ची अमिया सी खिलखिलाहटें हैं
झरबेरी सी कनफुसियाँ हैं
और भी बहुत कुछ ऐसा
जिसे हम सुनना नहीं चाहते
घर को पूरा कि पूरा निगल
अब थक कर बैठा ही है
कि सारी कि सारी आवाजें
उसके मुँह से निकल कर
मेरी खिड़की पर आ बैठीं
"घर के साथ ना जाने क्या
बेच गए, जाने वाले"
मैंने आवाजों के लिए दरवाजा खोल दिया।