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"ये भीड़ किधर जाएगी / हरीशचन्द्र पाण्डे" के अवतरणों में अंतर
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04:36, 5 जुलाई 2016 के समय का अवतरण
देहें सभी की उल्टी लटकी थीं
रक्त सभी के चू रहा था नीचे थाल में
जीभें लटकीं और आँखें पथराई सभी की थीं
रानें सभी की डोल रही थीं हवा में
गोश्त की दुकान और ख़रीदारों की भीड़
किसे माना जाय उल्टे लटके अपने समकालीनों में सबसे
बेहतर
किसी की आँखें बड़ी हैं किसी की रानें
और किसी के शुक्र कोष
ये भीड़ किधर जाएगी?