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फेरि समर्पण कता, कसरि अभिलाषा भए प्रदान ?
 
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दिन सकीनँ प्रियतम दान ।
 
दिन सकीनँ प्रियतम दान ।
 
  
 
रोयो धुरूधुरू नीरवता ओस अश्रु सुकुमार
 
रोयो धुरूधुरू नीरवता ओस अश्रु सुकुमार

14:56, 26 जुलाई 2017 के समय का अवतरण

दिन सकीनँ प्रियतम दान ।
अम्बरदेखी अवनिसम्मको राशि-राशि आकांक्षा
कुन्नी कसरि भरिन गो सानो उरमा यतिको इच्छा ?
फेरि समर्पण कता, कसरि अभिलाषा भए प्रदान ?
दिन सकीनँ प्रियतम दान ।

शरद्-निशामा रजत-ज्योत्स्ना खिलखिल हाँसिरहेको
नीलमको प्यालीमा प्रियतम अमृत छचल्किएको
पग्‌लिन थाले प्राणहरूका यी सारा अभिमान
अनी समर्पण कता, कसरि अभिलाषा भए प्रदान ?
दिन सकीनँ प्रियतम दान ।

साना क्षुद्र अकिञ्चन भए पनि लिइ निज उर-उच्छ्वास
कृष्ण-निशामा सबै ओच्याए तारक करूण प्रकाढ
थोपा-थोपा भई साधना आफैँ चुहे अजान
फेरि समर्पण कता, कसरि अभिलाषा भए प्रदान ?
दिन सकीनँ प्रियतम दान ।

रोयो धुरूधुरू नीरवता ओस अश्रु सुकुमार
आँखा खोलि उषाले हेरिन् थोपाको संसार
व्याप्त भए आफैँ समीरमा उरका व्याकुल गान
अनी समर्पण कता, कसरि अभिलाषा भए प्रदान ?
दिन सकीनँ प्रियतम दान ।