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"प्रार्थना की कड़ी / धर्मवीर भारती" के अवतरणों में अंतर

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प्रात सद्य:स्नात कन्धों पर बिखेरे केश
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आँसुओं में ज्यों धुला वैराग्य का सन्देश
तुम्हारा मन, हमारा मन,<br>
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चूमती रह-रह बदन को अर्चना की धूप
फिर किसी अनजान आशीर्वाद में-<br>
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यह सरल निष्काम पूजा-सा तुम्हारा रूप
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जी सकूँगा सौ जनम अँधियारियों में,  
मिलती मुझे राहत बड़ी !<br><br>
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चरण वे जो लक्ष्य तक चलने नहीं पाये
कन्धों पर बिखेरे केश<br>
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वे समर्पण जो न होठों तक कभी आये
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पूर्ण होती है किसी मधु-देवता की बाँह में!
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:प्रार्थना की एक अनदेखी कड़ी!
जी सकूँगा सौ जनम अँधियारियों में, यदि मुझे<br>
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प्रार्थना की एक अनदेखी कड़ी !
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17:20, 29 जून 2020 के समय का अवतरण


प्रार्थना की एक अनदेखी कड़ी
बाँध देती है, तुम्हारा मन, हमारा मन,
फिर किसी अनजान आशीर्वाद में-डूबकर
मिलती मुझे राहत बड़ी!

प्रात सद्य:स्नात कन्धों पर बिखेरे केश
आँसुओं में ज्यों धुला वैराग्य का सन्देश
चूमती रह-रह बदन को अर्चना की धूप
यह सरल निष्काम पूजा-सा तुम्हारा रूप
जी सकूँगा सौ जनम अँधियारियों में,
यदि मुझे मिलती रहे
काले तमस की छाँह में
ज्योति की यह एक अति पावन घड़ी!
प्रार्थना की एक अनदेखी कड़ी!

चरण वे जो लक्ष्य तक चलने नहीं पाये
वे समर्पण जो न होठों तक कभी आये
कामनाएँ वे नहीं जो हो सकीं पूरी-
घुटन, अकुलाहट, विवशता, दर्द, मजबूरी-
जन्म-जन्मों की अधूरी साधना,
पूर्ण होती है किसी मधु-देवता की बाँह में!
ज़िन्दगी में जो सदा झूठी पड़ी-
प्रार्थना की एक अनदेखी कड़ी!