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19:19, 18 अप्रैल 2009 के समय का अवतरण

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»  आईना


चाह की ऊंचाई पर

मन भी कैसा है

कैसा है आईना

पूरी तरह कोई

मन को ही बना देता है आईना

आईना को सौंपोगे कुछ

न इंकार करेगा न स्वीकार।

आईना से मांगोगे कुछ

लेगा नहीं कुछ, न ही देगा

फेंकेगा नहीं कुछ

कैसा है आईना

मन कैसा है

चाह की ऊंचाई पर ...