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(कैमरामैन संतोष शिवन के लिए)
बन्धु
कुछ शराब
कुछ सिगरेट
कुछ लापरवाही
कुछ धुआं
कुछ दायित्वहीनता
सोचते हो यही है सुकून
मगर बन्धु
मरोगे मरोगे
उम्र शून्य -
मृत्यु के बाद
तुम क्या
तुम रह जाओगे, बन्धु -
दृश्य अदृश्य होता है
देह सौन्दर्य पहेली बनता है
बची रहती है
आग की चमक
बन्द दुर्ग
जीवन रंगशाला है
तुम कहां हो
गजदन्त मीनार पर या
किसी बन्द दुर्ग के भीतर
मीनार को ढंक दिया है बादल ने
मीनार जीर्ण-शीर्ण हो गया है
दुर्ग धंस रहा है
टूट रहा है आदर्श का दुर्ग
और तुम
नर्सिसस, अपने-आप में
व्यस्त
झूठा
झूठा स्वर्ग।