भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आज तो मन अनमना / रामकुमार कृषक" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामकुमार कृषक |संग्रह= }} आज तो मन अनमना गाता नहीं खुद ब...)
 
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatGhazal‎}}‎
 +
<poem>
 
आज तो मन अनमना गाता नहीं
 
आज तो मन अनमना गाता नहीं
 
 
खुद बहल औरों को बहलाता नहीं
 
खुद बहल औरों को बहलाता नहीं
 
  
 
आदमी मिलना बहुत मुश्किल हुआ
 
आदमी मिलना बहुत मुश्किल हुआ
 
 
और मिलता है तो रह पाता नहीं
 
और मिलता है तो रह पाता नहीं
  
 
+
ग़लतियों पर गलतियाँ करते सभी
गलतियों पर गलतियाँ करते सभी
+
ग़लतियों पर कोई पछताता नहीं
 
+
गलतियों पर कोई पछताता नहीं
+
 
+
  
 
दूसरों के नंगपन पर आँख है
 
दूसरों के नंगपन पर आँख है
 
 
दूसरों की आँख सह पाता नहीं
 
दूसरों की आँख सह पाता नहीं
 
  
 
मालियों की भीड़ तो हर ओर है
 
मालियों की भीड़ तो हर ओर है
 
 
किंतु कोई फूल गंधाता नहीं
 
किंतु कोई फूल गंधाता नहीं
 
  
 
सामने है रास्ता सबके मगर
 
सामने है रास्ता सबके मगर
 
 
रास्ता तो खुद कहीं जाता नहीं
 
रास्ता तो खुद कहीं जाता नहीं
 
  
 
धमनियों में खून के बदले धुआँ
 
धमनियों में खून के बदले धुआँ
 
 
हड्डियाँ क्यों कोई दहकाता नहीं
 
हड्डियाँ क्यों कोई दहकाता नहीं
 +
</poem>

19:36, 12 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण

आज तो मन अनमना गाता नहीं
खुद बहल औरों को बहलाता नहीं

आदमी मिलना बहुत मुश्किल हुआ
और मिलता है तो रह पाता नहीं

ग़लतियों पर गलतियाँ करते सभी
ग़लतियों पर कोई पछताता नहीं

दूसरों के नंगपन पर आँख है
दूसरों की आँख सह पाता नहीं

मालियों की भीड़ तो हर ओर है
किंतु कोई फूल गंधाता नहीं

सामने है रास्ता सबके मगर
रास्ता तो खुद कहीं जाता नहीं

धमनियों में खून के बदले धुआँ
हड्डियाँ क्यों कोई दहकाता नहीं