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"होश / विष्णुचन्द्र शर्मा" के अवतरणों में अंतर

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मैंने
 
मैंने
 
होश नहीं खोया है!
 
होश नहीं खोया है!
 
चुप्पी का राज़
 
 
गन्ने के खेतों की मीठी गाँठें
 
चुप हैं।
 
वह नहीं जानती
 
कौन-सा कॉर्पोरेट घराना
 
खींच लेगा उसका रस।
 
मैं चाहकर भी अपने ही देश के गन्नों से
 
बतिया नहीं सकता हूँ।
 
मैं जानता हूँ
 
कब वह खोल दे अपना भय
 
कब छिपा ले अपना अनकहा दर्द!
 
 
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11:50, 17 मार्च 2017 के समय का अवतरण

सुनती हो
सागर लड़ते हुए
बेहोश हो गया है!
मैंने
होश नहीं खोया है!