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"भोरकॅ समय / योगेन्द्र चौधरी" के अवतरणों में अंतर

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|रचनाकार=भवप्रीतानन्द ओझा
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|रचनाकार=योगेन्द्र चौधरी
 
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|संग्रह=अंगिका के प्रतिनिधि प्रकृति कविता / गंगा प्रसाद राव
 
|संग्रह=अंगिका के प्रतिनिधि प्रकृति कविता / गंगा प्रसाद राव

13:52, 14 जुलाई 2017 के समय का अवतरण

पूरब में देखॅ हो लाल लाल
गोले गोल चक्का जे झलकै छै
धरती आरो सरङ ठीक जहाँ मिलै छै
रात के पहाड़ के फोड़ी केॅ निकलै छै
चमकी केॅ अपने सबकेॅ चमकाय छै
फिचकारी भरी केॅ धरती पर सगरे
लाल रंग फेकै छै डगरे डगरे
अबीर उड़ाय छै होली मनाय छै
बच्चा बूढ़ॅ मरद व मौगी
सबकोय एक सङ माथॅ नवाय छै
जुबती सब जाय छै नद्दी किनारा में
सुग्गा सन नाकॅ केॅ हाथॅ से चाँपी केॅ
डुबकी लगाय छै, तुरते बर हाय छै
दू-चार लट्टॅ जे सट्टी केॅ लटकै छै
गोरॅ गोरॅ गालॅ पर जेना कि चानँ पर
मेघ र टुकड़ा सट्टी-सट्टी जाय लै
नागिन रङ केस जे पीछू में लटकै छै
हिली हिली डौलै छै, कम्मर केॅ झटकै छै
धानी रङ साड़ी, कसलँ देहँ में
घुमची केॅ मोचरी केॅ सट्टी-सट्टी जाय छै
हाथ उठाय छै चूरू में भरी केॅ
पानी गिराय छै अरग चढ़ाय छै
कामा पुराय लेॅ सुरुज मनाय छै।
बमबम बोली केॅ शिबासा जाय छै
जँल ढारी केॅ दोनों कँर जोड़ी केॅ
माथॅ टेकाय छै, औढर दानी सें
बरदान मांगी केॅ नरबस चढ़ाय छै

पोखरी में पुरैनी रँ पत्ता पर
पानी के बून टघरै छै लघरै छै
मालुम पड़ै छै उजरॅ उजरँ
मोती रॅ दाना झकझकाय छै।
कमलॅ रङ पंखुरी फूली केॅ छितरै छै
रसॅ केॅ चूसी केॅ, झूमी केॅ, नाची केॅ
कारॅ कारॅ भौरा उड़ि उड़ि जाय छै।
गमछा लपेटी केॅ कमर में बान्ही केॅ
कान्हा पर हॅर लेॅ हाथॅ में तैनॅ
बैलॅ रॅ जोड़ी केॅ हाँकी केॅ निकलै छै
अन्नॅ रॅ दाता भाग रॅ विधाता
मस्ती में गाय छै खेतॅ पर जाय छै।