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"शेष होते हुए / गोविन्द माथुर" के अवतरणों में अंतर

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इस तरीके से नही
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* [[आत्महत्या से पहले / गोविन्द माथुर]]
 
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* [[अस्तित्व / गोविन्द माथुर]]
पहले हमें
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* [[एक अनाम दर्द / गोविन्द माथुर]]
 
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* [[डूबना और डूबना / गोविन्द माथुर]]
सहज होना होगा
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* [[प्रसंगहीन / गोविन्द माथुर]]
 
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* [[जंगल की आग / गोविन्द माथुर]]
किसी तनाव में
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* [[उजाले की पहचान / गोविन्द माथुर]]
 
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* [[उखड़े हुए चेहरे / गोविन्द माथुर]]
टूटने से बेहतर है
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* [[उजाले में खो जाने से पहले / गोविन्द माथुर]]
 
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* [[वे लोग / गोविन्द माथुर]]
धीरे-धीरे
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* [[फर्क इतना ही है / गोविन्द माथुर]]
 
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* [[जरूरी कुछ भी नहीं / गोविन्द माथुर]]
अज्ञात दिशाओं में
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* [[भटकाव / गोविन्द माथुर]]
 
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* [[हरे स्वप्न के अतिरिक्त / गोविन्द माथुर]]
गुम हो जाएँ
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* [[रौंदते हुए / गोविन्द माथुर]]
 
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* [[क्योंकि मैं तुम्हें जानता हूं / गोविन्द माथुर]]
 
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* [[मेरे समय का इतिहास / गोविन्द माथुर]]
हमारे सम्बन्ध
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* [[शेष होते हुए (कविता) / गोविन्द माथुर]]
 
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* [[क्योंकि में अभिमन्यु नहीं हूं / गोविन्द माथुर]]
कच्ची बर्फ से नही
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* [[अपने से लौटते हुए / गोविन्द माथुर]]
 
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* [[तुम्हारे और मेरे बीच / गोविन्द माथुर]]
कि हथेलियों में
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* [[मेरी आंखें / गोविन्द माथुर]]
 
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* [[शब्दों की ताजगी के लिए / गोविन्द माथुर]]
उठाते ही पिघल जाएँ
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* [[छगनलाल बीमार है / गोविन्द माथुर]]
 
+
* [[हवा को कैद करने की साजिश / गोविन्द माथुर]]
आख़िर हमने
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* [[वे लोग और वे लोग / गोविन्द माथुर]]
 
+
* [[खेल कठपुतलियों का / गोविन्द माथुर]]
 
+
* [[मांस के हिस्सेदार / गोविन्द माथुर]]
एक-दूसरे की
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* [[मेरे पिता जवाब दो / गोविन्द माथुर]]
 
+
* [[घर : एक सहमा हुआ अहसास / गोविन्द माथुर]]
गर्माहट महसूस की है
+
* [[मेरी मां का स्वप्न / गोविन्द माथुर]]
 
+
* [[मैं असभ्य हूं / गोविन्द माथुर]]
 
+
* [[ये झूठ है कि ईश्वर मर गया / गोविन्द माथुर]]
इतने दिनों तक
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तुमने और मैंने
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चौराहे पर खड़े हो कर
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अपने अस्तित्व को
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बनाए रखा है
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ये ठीक है कि
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हमें गुम भी
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इस ही
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चौराहे से होना है
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पर इस तरीके से नही
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पहले हमें
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मासूम होना होगा
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उतना ही मासूम
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जितना हम
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एक दूसरे से
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मिलने के पूर्व थे
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पहले मैं या तुम
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कोई भी
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एक आरोप लगाएंगे
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न समझ पाने का
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तुम्हें या मुझे
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और फिर
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महसूस करेगें
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उपेक्षा
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अपनी-अपनी
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कितना आसान होगा
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हमारा अलग हो जाना
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जब हम
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किसी उदास शाम को
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चौराहे पर मौन खड़े होंगे
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और फिर जब
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तुम्हारे और मेरे बीच
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संवाद टूट जएगा
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कभी तुम चौराहे पर
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अकेले खड़े होगें
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और कभी मैं
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फिर धीरे-धीरे
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हमें एक दूसरे की
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प्रतीक्षा नही होगी
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कितना सहज होगा
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हमारा अजनबी हो जाना
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जब हम सड़कों और गलियों में
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एक दूसरे को देख कर
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मुस्करा भर देंगे
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या हमारा हाथ
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एक औपचारिकता में
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उठ जाया करेगा
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हाँ हमें
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इतनी जल्दी भी क्या है
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ये सब
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सहज ही हो जाएगा
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फिर हमें
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बीती बातों के नाम पर
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यदि याद रहेगा तो
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सिर्फ़
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एक-दूसरे का नाम
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14:47, 1 अक्टूबर 2025 के समय का अवतरण

शेष होते हुए
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रचनाकार गोविन्द माथुर
प्रकाशक जनजीवन प्रकाशन, जयपुर
वर्ष 1985
भाषा हिन्दी
विषय कविता
विधा छन्दहीन
पृष्ठ 90
ISBN
विविध
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।