"देगची में प्रेम / अनुराधा सिंह" के अवतरणों में अंतर
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− | + | बहुत आगे जाकर पूरब में कहीं | |
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− | + | मैं प्रेम को सिरे से खारिज करता हुआ | |
− | + | ‘प्रेम’ की आखिरी किश्त भी | |
− | + | भुना लेना चाहता था | |
− | + | और यही आखिरी मुद्दा पिछले कई सौ सालों से | |
− | + | उसे परेशान किए हुए था | |
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− | + | हमारे मजहब और धर्म की निरी अदला बदली | |
− | + | भी उसकी हताशा कम नहीं कर पाएगी | |
− | + | उसके और मेरे लोग | |
− | + | घरों, बाज़ारों, सड़कों, स्कूलों को | |
− | + | परमाणु रियेक्टर बनाए हुए हैं | |
− | + | फ्रिज में पता नहीं क्या क्या रखा है | |
− | + | और पूरब में लोग कितना ऊपर चढ़ने के लिए | |
− | + | यहाँ कितने गहरे गिर रहे हैं | |
− | + | इन सबसे ज़्यादा बड़ा मसला | |
− | + | मेरा उसके प्रेम को हल्के में लेना था | |
− | + | और वह सिरे से ‘न’ कहना सीख रही थी। | |
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15:09, 16 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
बगल वाले कमरे में
उसके अब्बा घर की सबसे बड़ी देग में
परमाणु बम बना रहे थे
फ्रिज में एक नामालूम सा लाल रंग का माँस रखा था
बहुत आगे जाकर पूरब में कहीं
तख़्ता पलट होने वाला था
मैं प्रेम को सिरे से खारिज करता हुआ
‘प्रेम’ की आखिरी किश्त भी
भुना लेना चाहता था
और यही आखिरी मुद्दा पिछले कई सौ सालों से
उसे परेशान किए हुए था
आज तो
हमारे मजहब और धर्म की निरी अदला बदली
भी उसकी हताशा कम नहीं कर पाएगी
उसके और मेरे लोग
घरों, बाज़ारों, सड़कों, स्कूलों को
परमाणु रियेक्टर बनाए हुए हैं
फ्रिज में पता नहीं क्या क्या रखा है
और पूरब में लोग कितना ऊपर चढ़ने के लिए
यहाँ कितने गहरे गिर रहे हैं
इन सबसे ज़्यादा बड़ा मसला
मेरा उसके प्रेम को हल्के में लेना था
और वह सिरे से ‘न’ कहना सीख रही थी।