"रूमा / सुकुमार चौधुरी / मीता दास" के अवतरणों में अंतर
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− | महरून रंग की साड़ी, गाढ़े नीले रंग का कार्डिगन, रक्तिम स्लीपर | + | महरून रंग की साड़ी, गाढ़े नीले रंग का कार्डिगन, |
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ढलती शाम की धूप में अनार के फूल की तरह | ढलती शाम की धूप में अनार के फूल की तरह | ||
− | लग रहा था वह मुखड़ा | + | लग रहा था वह मुखड़ा । |
उसके उड़ते बालों की झील में खेल रही थी | उसके उड़ते बालों की झील में खेल रही थी | ||
− | विदा लेते दिन की | + | विदा लेते दिन की लालिमा। |
आदि दिगन्त जैसी भौहों की सन्धि पर यह मोहक बिन्दी | आदि दिगन्त जैसी भौहों की सन्धि पर यह मोहक बिन्दी | ||
− | कितने दिनों के बाद छू लेने की इच्छा | + | कितने दिनों के बाद छू लेने की इच्छा हुई। |
जबकि सैकड़ों आलोकित वर्ष कट जाने के बाद | जबकि सैकड़ों आलोकित वर्ष कट जाने के बाद | ||
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आख़िर ख़त्म हुआ | आख़िर ख़त्म हुआ | ||
अन्ध पर्यटन | अन्ध पर्यटन | ||
− | फिर भी अंजलि भर उठा ही ली शिल्प- | + | फिर भी अंजलि भर उठा ही ली शिल्प-कला। |
ख़ुद को भिखारी-सा महसूस किया | ख़ुद को भिखारी-सा महसूस किया |
01:48, 1 जनवरी 2018 के समय का अवतरण
बड़े दिनों बाद मुलाकात हुई रुमा नाम की उस लड़की से
महरून रंग की साड़ी, गाढ़े नीले रंग का कार्डिगन,
रक्तिम स्लीपर
ढलती शाम की धूप में अनार के फूल की तरह
लग रहा था वह मुखड़ा ।
उसके उड़ते बालों की झील में खेल रही थी
विदा लेते दिन की लालिमा।
आदि दिगन्त जैसी भौहों की सन्धि पर यह मोहक बिन्दी
कितने दिनों के बाद छू लेने की इच्छा हुई।
जबकि सैकड़ों आलोकित वर्ष कट जाने के बाद
यह चेहरा देख
अनेक स्वप्न भरे द्वीपों में चक्कर लगाते-लगाते
आख़िर ख़त्म हुआ
अन्ध पर्यटन
फिर भी अंजलि भर उठा ही ली शिल्प-कला।
ख़ुद को भिखारी-सा महसूस किया
और लगा दृष्टि हीन भी हूँ,
जैसे मैंने कुछ देखा ही नहीं
इतना रूप, इतना अपार
ऐसा ही अगम्य वह शिल्प मुखड़ा,
इतना गम्भीर
जैसे समुद्र पठार इन नीली आँखों में बह गया...
मेरी बुद्धि भी...?
मूल बांग्ला से अनुवाद — मीता दास