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"हर कोई चाहता है / लावण्या शाह" के अवतरणों में अंतर

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हर कोई चाहता है,
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हो मेरा एक नन्हा आशियाँ
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काम मेरे पास हो,
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घर पर मेरे अधिकार हो,
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पर, यही, मेरा और तेरा ,
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हर कोई चाहता है, <br>
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रोटी की भूख, इन्सानों को,  
हो मेरा एक नन्हा आशियाँ<br>
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चलाती है,
काम मेरे पास हो, <br>
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घर पर मेरे अधिकार हो,<br>
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चक्रव्यूह कैसे , फँसाते हैँ ,  
पर, यही, मेरा और तेरा , <br>
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सबको, मृत्यु के पाश में ?
क्योँ बन जाता, सरहदोँ मेँ बँटा,<br>
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शत्रुता का, कटु व्यवहार?<br><br>
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लोभ, लालच, स्वार्थ वृत्त्ति,
चलाती है,<br>
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अनहद,धन व मद का
रात दिन के फेर मेँ पर,<br>
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नहीँ रहता कोई सँतुलन!
चक्रव्यूह कैसे , फँसाते हैँ , <br>
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मैं ही सच , मेरा धर्म ही सच!
सबको, मृत्यु के पाश मेँ ?<br><br>
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सारे धर्म, वे सारे, गलत हैं !
  
लोभ, लालच, स्वार्थ वृत्त्ति,<br>
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क्यों सोचता, ऐसा है आदमी ??
अनहद,धन व मद का <br>
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भूल कर, अपने से बडा सच!!
नहीँ रहता कोई सँतुलन!<br>
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मँ ही सच , मेरा धर्म ही सच!<br>
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सारे धर्म, वे सारे, गलत हैँ !<br><br>
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क्योँ सोचता, ऐसा है आदमी ??<br>
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मनोमन्थन है अब अनिवार्य,
भूल कर, अपने से बडा सच!!<br><br>
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सत्य का सामना, करो नर,
 
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उठो बन कर नई आग,
मनोमन्थन है अब अनिवार्य,<br>
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जागो, बुलाता तुम्हें, विहान,
सत्य का सामना, करो नर,<br>
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है जो,आया अब समर का!
उठो बन कर नई आग,<br>
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जागो, बुलाता तुम्हेँ, विहान,<br>
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है जो,आया अब समर का !
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09:35, 22 अगस्त 2013 के समय का अवतरण

हर कोई चाहता है,
हो मेरा एक नन्हा आशियाँ
काम मेरे पास हो,
घर पर मेरे अधिकार हो,
पर, यही, मेरा और तेरा ,
क्योँ बन जाता, सरहदों में बँटा,
शत्रुता का, कटु व्यवहार?

रोटी की भूख, इन्सानों को,
चलाती है,
रात दिन के फेर में पर,
चक्रव्यूह कैसे , फँसाते हैँ ,
सबको, मृत्यु के पाश में ?

लोभ, लालच, स्वार्थ वृत्त्ति,
अनहद,धन व मद का
नहीँ रहता कोई सँतुलन!
मैं ही सच , मेरा धर्म ही सच!
सारे धर्म, वे सारे, गलत हैं !

क्यों सोचता, ऐसा है आदमी ??
भूल कर, अपने से बडा सच!!

मनोमन्थन है अब अनिवार्य,
सत्य का सामना, करो नर,
उठो बन कर नई आग,
जागो, बुलाता तुम्हें, विहान,
है जो,आया अब समर का!