"माँ / भाग ४ / मुनव्वर राना" के अवतरणों में अंतर
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हादसों की गर्द से ख़ुद को बचाने के लिए | हादसों की गर्द से ख़ुद को बचाने के लिए | ||
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माँ ! हम अपने साथ बस तेरी दुआ ले जायेंगे | माँ ! हम अपने साथ बस तेरी दुआ ले जायेंगे | ||
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हवा उड़ाए लिए जा रही है हर चादर | हवा उड़ाए लिए जा रही है हर चादर | ||
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पुराने लोग सभी इन्तेक़ाल करने लगे | पुराने लोग सभी इन्तेक़ाल करने लगे | ||
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ऐ ख़ुदा ! फूल —से बच्चों की हिफ़ाज़त करना | ऐ ख़ुदा ! फूल —से बच्चों की हिफ़ाज़त करना | ||
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मुफ़लिसी चाह रही है मेरे घर में रहना | मुफ़लिसी चाह रही है मेरे घर में रहना | ||
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हमें हरीफ़ों की तादाद क्यों बताते हो | हमें हरीफ़ों की तादाद क्यों बताते हो | ||
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हमारे साथ भी बेटा जवान रहता है | हमारे साथ भी बेटा जवान रहता है | ||
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ख़ुद को इस भीड़ में तन्हा नहीं होने देंगे | ख़ुद को इस भीड़ में तन्हा नहीं होने देंगे | ||
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माँ तुझे हम अभी बूढ़ा नहीं होने देंगे | माँ तुझे हम अभी बूढ़ा नहीं होने देंगे | ||
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जब भी देखा मेरे किरदार पे धब्बा कोई | जब भी देखा मेरे किरदार पे धब्बा कोई | ||
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देर तक बैठ के तन्हाई में रोया कोई | देर तक बैठ के तन्हाई में रोया कोई | ||
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ख़ुदा करे कि उम्मीदों के हाथ पीले हों | ख़ुदा करे कि उम्मीदों के हाथ पीले हों | ||
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अभी तलक तो गुज़ारी है इद्दतों की तरह | अभी तलक तो गुज़ारी है इद्दतों की तरह | ||
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घर की दहलीज़ पे रौशन हैं वो बुझती आँखें | घर की दहलीज़ पे रौशन हैं वो बुझती आँखें | ||
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मुझको मत रोक मुझे लौट के घर जाना है | मुझको मत रोक मुझे लौट के घर जाना है | ||
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यहीं रहूँगा कहीं उम्र भर न जाउँगा | यहीं रहूँगा कहीं उम्र भर न जाउँगा | ||
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ज़मीन माँ है इसे छोड़ कर न जाऊँगा | ज़मीन माँ है इसे छोड़ कर न जाऊँगा | ||
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स्टेशन से वापस आकर बूढ़ी आँखें सोचती हैं | स्टेशन से वापस आकर बूढ़ी आँखें सोचती हैं | ||
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पत्ते देहाती रहते हैं फल शहरी हो जाते हैं | पत्ते देहाती रहते हैं फल शहरी हो जाते हैं |
17:24, 14 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण
हादसों की गर्द से ख़ुद को बचाने के लिए
माँ ! हम अपने साथ बस तेरी दुआ ले जायेंगे
हवा उड़ाए लिए जा रही है हर चादर
पुराने लोग सभी इन्तेक़ाल करने लगे
ऐ ख़ुदा ! फूल —से बच्चों की हिफ़ाज़त करना
मुफ़लिसी चाह रही है मेरे घर में रहना
हमें हरीफ़ों की तादाद क्यों बताते हो
हमारे साथ भी बेटा जवान रहता है
ख़ुद को इस भीड़ में तन्हा नहीं होने देंगे
माँ तुझे हम अभी बूढ़ा नहीं होने देंगे
जब भी देखा मेरे किरदार पे धब्बा कोई
देर तक बैठ के तन्हाई में रोया कोई
ख़ुदा करे कि उम्मीदों के हाथ पीले हों
अभी तलक तो गुज़ारी है इद्दतों की तरह
घर की दहलीज़ पे रौशन हैं वो बुझती आँखें
मुझको मत रोक मुझे लौट के घर जाना है
यहीं रहूँगा कहीं उम्र भर न जाउँगा
ज़मीन माँ है इसे छोड़ कर न जाऊँगा
स्टेशन से वापस आकर बूढ़ी आँखें सोचती हैं
पत्ते देहाती रहते हैं फल शहरी हो जाते हैं