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"अँधेरे की सुरंगों से निकल कर / जहीर कुरैशी" के अवतरणों में अंतर

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खड़े थे व्यस्त अपनी बतकही में
गए सब रोशनी की ओर चलकर<br><br>
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जिन्हें जनता ने खारिज कर दिया था
तो खींचा ध्यान बच्चे ने मचलकर<br><br>
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अधर से हो गई मुस्कान ग़ायब
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लगा पानी के छींटे से ही अंकुश
दिखाना चाहते हैं फूल—फलकर<br><br>
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निरंकुश दूध हो बैठा, उबलकर
  
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कली के प्यार में मर—मिटने वाले
निरंकुश दूध हो बैठा, उबलकर<br><br>
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कली को फेंक देते हैं मसलकर
  
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घुसे जो लोग काजल—कोठरी में
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उन्हें चलना पड़ा बेहद सँभलकर
 
उन्हें चलना पड़ा बेहद सँभलकर
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22:48, 20 अप्रैल 2021 के समय का अवतरण

अँधेरे की सुरंगों से निकल कर
गए सब रोशनी की ओर चलकर

खड़े थे व्यस्त अपनी बतकही में
तो खींचा ध्यान बच्चे ने मचलकर

जिन्हें जनता ने खारिज कर दिया था
सदन में आ गए कपड़े बदलकर

अधर से हो गई मुस्कान ग़ायब
दिखाना चाहते हैं फूल—फलकर

लगा पानी के छींटे से ही अंकुश
निरंकुश दूध हो बैठा, उबलकर

कली के प्यार में मर—मिटने वाले
कली को फेंक देते हैं मसलकर

घुसे जो लोग काजल—कोठरी में
उन्हें चलना पड़ा बेहद सँभलकर