"सरमाएदारी / मजाज़ लखनवी" के अवतरणों में अंतर
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मजाज़ लखनवी |संग्रह= }} कलेजा फुक रहा है और जबाँ कहने ...) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
}} | }} | ||
− | कलेजा फुक रहा है और जबाँ कहने से आरी है, | + | {{KKCatGhazal}} |
− | बताऊँ क्या तुम्हें क्या चीज यह सरमाएदारी है, | + | <poem> |
− | यह वह आँधी है जिसके रो में मुफलिस का नशेमन है, | + | कलेजा फुक रहा है और जबाँ कहने से आरी है, |
− | यह वह बिजली है जिसकी जद में हर दहकान का खरमन है | + | बताऊँ क्या तुम्हें क्या चीज यह सरमाएदारी है, |
+ | |||
+ | यह वह आँधी है जिसके रो में मुफलिस का नशेमन है, | ||
+ | यह वह बिजली है जिसकी जद में हर दहकान का खरमन है | ||
+ | |||
यह अपने हाथ में तहजीब का फानूस लेती है, | यह अपने हाथ में तहजीब का फानूस लेती है, | ||
− | मगर मजदूर के तन से लहू तक चूस लेती है | + | मगर मजदूर के तन से लहू तक चूस लेती है |
− | यह इंसानी बला खुद खूने इंसानी की गाहक है, | + | |
− | वबा से बढकर मुहलक, मौत से बढकर भयानक है। | + | यह इंसानी बला खुद खूने इंसानी की गाहक है, |
− | न देखें हैं बुरे इसने, न परखे हैं भले इसने, | + | वबा से बढकर मुहलक, मौत से बढकर भयानक है। |
− | शिकंजों में जकड कर घोंट डाले है गले इसने। | + | |
− | कहीं यह खूँ से फरदे माल व जर तहरीर करती है, | + | न देखें हैं बुरे इसने, न परखे हैं भले इसने, |
− | कहीं यह हड्डियाँ चुन कर महल तामीर करती है। | + | शिकंजों में जकड कर घोंट डाले है गले इसने। |
− | गरीबों का मुकद्दस खून पी-पी कर बहकती है | + | |
− | महल में नाचती है रक्सगाहों में थिरकती है। | + | कहीं यह खूँ से फरदे माल व जर तहरीर करती है, |
− | जिधर चलती है बर्बादी के सामां साथ चलते हैं, | + | कहीं यह हड्डियाँ चुन कर महल तामीर करती है। |
− | नहूसत हमसफर होती है शैतान साथ चलते हैं। | + | |
− | यह अक्सर टूटकर मासूम इंसानों की राहों में, | + | गरीबों का मुकद्दस खून पी-पी कर बहकती है |
− | खुदा के जमजमें गाती है, छुपकर खनकाहों में। | + | महल में नाचती है रक्सगाहों में थिरकती है। |
− | यह गैरत छीन लेती है, हिम्मत छीन लेती है, | + | |
− | यह इंसानों से इंसानों की फतरत छीन लेती है। | + | जिधर चलती है बर्बादी के सामां साथ चलते हैं, |
− | गरजती, गूँजती यह आज भी मैदाँ में आती है, | + | नहूसत हमसफर होती है शैतान साथ चलते हैं। |
− | मगर बदमस्त है हर हर कदम पर लडखडाती है। | + | |
− | मुबारक दोस्तों लबरेज है इस का पैमाना, | + | यह अक्सर टूटकर मासूम इंसानों की राहों में, |
+ | खुदा के जमजमें गाती है, छुपकर खनकाहों में। | ||
+ | |||
+ | यह गैरत छीन लेती है, हिम्मत छीन लेती है, | ||
+ | यह इंसानों से इंसानों की फतरत छीन लेती है। | ||
+ | |||
+ | गरजती, गूँजती यह आज भी मैदाँ में आती है, | ||
+ | मगर बदमस्त है हर हर कदम पर लडखडाती है। | ||
+ | |||
+ | मुबारक दोस्तों लबरेज है इस का पैमाना, | ||
उठाओ आँधियाँ कमजोर है बुनियादे काशाना। | उठाओ आँधियाँ कमजोर है बुनियादे काशाना। |
21:12, 24 जून 2013 के समय का अवतरण
कलेजा फुक रहा है और जबाँ कहने से आरी है,
बताऊँ क्या तुम्हें क्या चीज यह सरमाएदारी है,
यह वह आँधी है जिसके रो में मुफलिस का नशेमन है,
यह वह बिजली है जिसकी जद में हर दहकान का खरमन है
यह अपने हाथ में तहजीब का फानूस लेती है,
मगर मजदूर के तन से लहू तक चूस लेती है
यह इंसानी बला खुद खूने इंसानी की गाहक है,
वबा से बढकर मुहलक, मौत से बढकर भयानक है।
न देखें हैं बुरे इसने, न परखे हैं भले इसने,
शिकंजों में जकड कर घोंट डाले है गले इसने।
कहीं यह खूँ से फरदे माल व जर तहरीर करती है,
कहीं यह हड्डियाँ चुन कर महल तामीर करती है।
गरीबों का मुकद्दस खून पी-पी कर बहकती है
महल में नाचती है रक्सगाहों में थिरकती है।
जिधर चलती है बर्बादी के सामां साथ चलते हैं,
नहूसत हमसफर होती है शैतान साथ चलते हैं।
यह अक्सर टूटकर मासूम इंसानों की राहों में,
खुदा के जमजमें गाती है, छुपकर खनकाहों में।
यह गैरत छीन लेती है, हिम्मत छीन लेती है,
यह इंसानों से इंसानों की फतरत छीन लेती है।
गरजती, गूँजती यह आज भी मैदाँ में आती है,
मगर बदमस्त है हर हर कदम पर लडखडाती है।
मुबारक दोस्तों लबरेज है इस का पैमाना,
उठाओ आँधियाँ कमजोर है बुनियादे काशाना।