भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"‘लेट’- लतीफा / बालकृष्ण गर्ग" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बालकृष्ण गर्ग |अनुवादक= |संग्रह=आ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
{{KKCatBaalKavita}} | {{KKCatBaalKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | घोडा काफी देरी से जब | |
− | + | पहुँच अपने दफ्तर, | |
− | + | ‘रोज लेट आते हो क्यों तुम’ | |
− | + | -घुड़का बंदर अफसर। | |
− | + | घोडा बोला-‘नहीं, नहीं सर! | |
− | + | ऐसा कभी न होता; | |
− | + | मैं न लेटता, कभी न लेटा, | |
− | + | खड़े-खड़े ही सोता’। | |
− | [ | + | |
+ | [बालक, जुलाई 1977] | ||
</poem> | </poem> |
14:22, 22 मई 2018 के समय का अवतरण
घोडा काफी देरी से जब
पहुँच अपने दफ्तर,
‘रोज लेट आते हो क्यों तुम’
-घुड़का बंदर अफसर।
घोडा बोला-‘नहीं, नहीं सर!
ऐसा कभी न होता;
मैं न लेटता, कभी न लेटा,
खड़े-खड़े ही सोता’।
[बालक, जुलाई 1977]