"लाल / शिशु पाल सिंह 'शिशु'" के अवतरणों में अंतर
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मृत्यु की लहरों पर तैर कर, अडिग निज प्रण पर रहते है। | मृत्यु की लहरों पर तैर कर, अडिग निज प्रण पर रहते है। | ||
कभी धार्मिक-वेदी के भेद मिटाने में मिट जाते हैं, | कभी धार्मिक-वेदी के भेद मिटाने में मिट जाते हैं, | ||
− | गोलियाँ सीने पर ले तीन अनमिले हृदय मिलाते हैं। | + | गोलियाँ सीने पर ले तीन अनमिले हृदय मिलाते हैं। |
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+ | इस तरह एक डाल से तरह-तरह के पात निकलते हैं। | ||
+ | किन्तु सबके फूलों से एक स्वाद के ही फल फलते हैं॥ | ||
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17:36, 13 जून 2018 के समय का अवतरण
जननि! तेरी गोदी के लाल, विविध कौशल दिखलाते हैं,
इन्कलाबी शक्लों को नये-नये जामे पहनाते हैं।
कभी राणा बनकर पच्चीस साल-शूलों से घिरते है,
बचाने को निज गौरव—मानसिंह से बन–बन फिरते हैं।
कभी कायर विराग को शस्त्र दिला, रण-नौका खेते हैं,
माण्डले की कारा से कर्म-योग की किरणें देते हैं।
कभी लक्ष्मीबाई के लिखे, पृष्ठ दुहराते झाँसी के,
वतन के बनते सच्चे भगत, पहनकर फन्दे फाँसी के.
कभी जलयानों से भी कूद, वीर सागर पर बहते हैं,
मृत्यु की लहरों पर तैर कर, अडिग निज प्रण पर रहते है।
कभी धार्मिक-वेदी के भेद मिटाने में मिट जाते हैं,
गोलियाँ सीने पर ले तीन अनमिले हृदय मिलाते हैं।
इस तरह एक डाल से तरह-तरह के पात निकलते हैं।
किन्तु सबके फूलों से एक स्वाद के ही फल फलते हैं॥