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+ | वहीं पहुँच जातीं । | ||
+ | अदना - सी है | ||
+ | बस मेरी तो ख्याति । | ||
+ | फिर भी क्यों वो | ||
+ | है उनको डराती? | ||
+ | छोटी किरण | ||
+ | हाथ में लेकर मैं | ||
+ | अपने लिये | ||
+ | छोटा- सा रोशनी का | ||
+ | प्यारा -सा गाँव | ||
+ | भावों की इक झील | ||
+ | नन्हे-नन्हे- से | ||
+ | विचारों के कमल | ||
+ | खु़शबू -भरी | ||
+ | प्रेम से सराबोर | ||
+ | शब्दों की आत्मा | ||
+ | तैराना हूँ चाहती । | ||
+ | पर जाने क्यों | ||
+ | बना दी जाती,बड़ी | ||
+ | मुश्किल और | ||
+ | कँटीली राहें मेरी | ||
+ | बस बीनती | ||
+ | एक-एक काँटे को | ||
+ | बना लेती हूँ | ||
+ | जोड़के इक घर। | ||
+ | आश्वस्त हूँ मैं | ||
+ | आ ना पाए कोई भी | ||
+ | काँटों से डर। | ||
+ | न मैं मज़बूर हूँ | ||
+ | न ही कलम | ||
+ | अब न बिखरेगी | ||
+ | न ही टूटेगी | ||
+ | बेधड़क होकर | ||
+ | दौड़ेगी ये कलम। | ||
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18:22, 18 जुलाई 2018 के समय का अवतरण
मेरा आस्तित्व
बहुत ही बौना है ।
बड़ी हस्तियाँ
जाने क्या हैं चाहती
जहाँ मैं जाऊँ
वहीं पहुँच जातीं ।
अदना - सी है
बस मेरी तो ख्याति ।
फिर भी क्यों वो
है उनको डराती?
छोटी किरण
हाथ में लेकर मैं
अपने लिये
छोटा- सा रोशनी का
प्यारा -सा गाँव
भावों की इक झील
नन्हे-नन्हे- से
विचारों के कमल
खु़शबू -भरी
प्रेम से सराबोर
शब्दों की आत्मा
तैराना हूँ चाहती ।
पर जाने क्यों
बना दी जाती,बड़ी
मुश्किल और
कँटीली राहें मेरी
बस बीनती
एक-एक काँटे को
बना लेती हूँ
जोड़के इक घर।
आश्वस्त हूँ मैं
आ ना पाए कोई भी
काँटों से डर।
न मैं मज़बूर हूँ
न ही कलम
अब न बिखरेगी
न ही टूटेगी
बेधड़क होकर
दौड़ेगी ये कलम।