"क्रान्ति गीत /राम शरण शर्मा 'मुंशी'" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राम शरण शर्मा 'मुंशी' |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 10: | पंक्ति 10: | ||
धरती को धन से भरने वालो ! | धरती को धन से भरने वालो ! | ||
− | + | बोलो कब तक त्रास सहोगे? | |
− | + | कटु वाणी उपहास सहोगे? | |
तुम अगणित, भूखे, अधनंगे, | तुम अगणित, भूखे, अधनंगे, | ||
अपना घर, फिर भी भिखमंगे; | अपना घर, फिर भी भिखमंगे; | ||
− | + | अन्न-वस्त्र को हाथ बढ़ाते | |
− | + | तुम निरस्त्र गोली ही पाते — | |
− | + | इतने पर भी नहीं शत्रु को मिलता किंचित तोष ! | |
− | + | करो-करो, नूतन रण का उद्घोष ! | |
− | + | यह पवित्र आक्रोश ! | |
− | बढ़ो ध्वजा अपनी | + | बढ़ो ध्वजा अपनी फहराओ |
रणभेरी का नाद गुँजाओ | रणभेरी का नाद गुँजाओ | ||
− | + | कोटि-कोटि ओ तुम ! बढ़ आओ, | |
− | + | रण कौशल अपना दिखलाओ | |
दृढ़-प्रतिज्ञ वीरो, मतवालो; | दृढ़-प्रतिज्ञ वीरो, मतवालो; | ||
शत्रु-शिविर पर घेरा डालो ! | शत्रु-शिविर पर घेरा डालो ! | ||
− | + | करो व्यूह की अद्भुत्त रचना, | |
− | + | विजय नीति की दृढ़ संरचना, | |
− | + | कुटिल शत्रु की नियति मृत्यु है, नहीं तुम्हारा दोष ! | |
− | + | करो-करो, नूतन रण का उद्घोष ! | |
− | + | यह पवित्र आक्रोश ! | |
</poem> | </poem> |
14:08, 31 जुलाई 2018 के समय का अवतरण
ओ निर्धन, श्रम करने वालो,
धरती को धन से भरने वालो !
बोलो कब तक त्रास सहोगे?
कटु वाणी उपहास सहोगे?
तुम अगणित, भूखे, अधनंगे,
अपना घर, फिर भी भिखमंगे;
अन्न-वस्त्र को हाथ बढ़ाते
तुम निरस्त्र गोली ही पाते —
इतने पर भी नहीं शत्रु को मिलता किंचित तोष !
करो-करो, नूतन रण का उद्घोष !
यह पवित्र आक्रोश !
बढ़ो ध्वजा अपनी फहराओ
रणभेरी का नाद गुँजाओ
कोटि-कोटि ओ तुम ! बढ़ आओ,
रण कौशल अपना दिखलाओ
दृढ़-प्रतिज्ञ वीरो, मतवालो;
शत्रु-शिविर पर घेरा डालो !
करो व्यूह की अद्भुत्त रचना,
विजय नीति की दृढ़ संरचना,
कुटिल शत्रु की नियति मृत्यु है, नहीं तुम्हारा दोष !
करो-करो, नूतन रण का उद्घोष !
यह पवित्र आक्रोश !