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"कविता मेरे लिए / अशोक कुमार" के अवतरणों में अंतर

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जहाँ ठहर जाता हूँ मैं!  
 
जहाँ ठहर जाता हूँ मैं!  
 
 
घड़ियाँ बन्द क्यों हैं
 
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घड़ियाँ कलाईयों पर नहीं हैं अब
 
वे मुट्ठियों में हैं या जेबों में
 
पर समय गिरेबान पर चढ़ गया है
 
और रेत रहा है
 
 
समय की फिक्र से बच गयी हैं भुजायें
 
और हथेलियों या जेबों में बची हैं सिर्फ़ बन्द घड़ियाँ ही
 
समय के फिसलने के बाद
 
 
घड़ियों ने समय को व्यक्त करने से मना कर दिया है
 
वे उससे बँध कर नहीं रहना चाहतीं
 
और न ही उसे बाँध कर रखना चाहती हैं काँच के किसी घेरे में
 
 
दीवार अब समय देखे जाने की माकूल जगह नहीं रही
 
और घड़ियाँ अब वहाँ टाँगे जाने से बगावत कर बैठी हैं
 
 
नगर में टावर पुरातत्व के अवशेष भर हैं
 
और बन्द पड़ी हैं घड़ियाँ।
 
 
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11:20, 15 अगस्त 2018 के समय का अवतरण

कविता बस दृष्टि है मेरे लिए
जहाँ से देखता हूँ मैं

बस एक शीशे के पार ही तो होता है
दुनिया का सारा ऐश्वर्य

जहाँ ठहर जाता हूँ मैं!