भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"एक्कीस / आह्वान / परमेश्वरी सिंह 'अनपढ़'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=परमेश्वरी सिंह 'अनपढ़' |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}
 
<poem>
 
<poem>
सीते! कह दो राम से, पर्णकुटी सुख धाम!
+
हँस-हँस अपना शीश चढ़ा कर
मैं मृग बढ़ कर आ रही, सोजाओं श्री राम!
+
मोल न सिर का माँगा
  
सावधान हो लखन! खीचती हूँ मैं एक लकीर
+
तुम न कहो धरती कह देगी
“कहि कहि विपिन कथा दुख नाना” माँगों उनसे तीर
+
मिट्टी-पत्थर-पानी
 +
सब पर छाई एक निशानी
  
सो जाओ श्री राम और मैं हूँ वीरांगना जागी
+
हो जाए इतिहास भेले चुप हम कर लें नादानी
भारत माँ की वीर सपूती मैं ही ललित-ललाम
+
किन्तु भाल भारत का ऊँचा कह देगी कुर्वानी
मैं मृग बढ़ कर आ रही, सो जाओ श्री राम! 
+
प्रकृति लिखेगी अमर पट्ट पर
 +
जो मुँह खोल न माँगा
 +
हँस-हँस अपना शीश चढ़ा कर...
  
पूछना मेरा पता तुम मत लता तरू बृन्द से
+
चला गया जो वीर खींच कर
मैं तो शरहद पर चली आवाज आई हिन्द से
+
निज शोणित की रेखा
 +
भारत सीते! बंद रहो तुम  
 +
अडिग अक्ष्मण रेखा
  
“पलंग पीठ तजि गोद हिंडोला” अब न रहूँगी
+
भारत की शरहद पर मर जो खींचा अमिट निशानी
निशिचर निकर से लड़ लूँगी मैं हे ज्योति के धाम
+
खो जायेगा जिस दिन सूरज, सो जायेंगे प्राणी
मैं मृग बध कर आ रही, सोजाओ श्री राम!
+
उसके यश को शून्य कहेगा
 +
जो मुँह खोल न माँगा
 +
हँस-हँस अपना शीश चढ़ा कर...
  
राम धर दे धनुष, दे दे तीर तरकस
+
दुश्मन के सिर फूल चढ़ा दो
थक गई तेरी भुजाएँ, पड़ ठंडी ये नस नस
+
लाल खून का पानी
 +
शीश चढ़ाने वालों की भू
 +
है भारत माँ रानी
  
 
+
मेरा कोटि प्राणम उसे है
मैं नहीं अबला रही अब, युद्ध बेकाम
+
जो सिर टोल न माँगा
मैं मृग बध कर आ रही, सोजाओ श्री राम!
+
हँस-हँस  अपना शीश चढ़ा कर...
 
</poem>
 
</poem>

13:26, 3 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण

हँस-हँस अपना शीश चढ़ा कर
मोल न सिर का माँगा

तुम न कहो धरती कह देगी
मिट्टी-पत्थर-पानी
सब पर छाई एक निशानी

हो जाए इतिहास भेले चुप हम कर लें नादानी
किन्तु भाल भारत का ऊँचा कह देगी कुर्वानी
प्रकृति लिखेगी अमर पट्ट पर
जो मुँह खोल न माँगा
हँस-हँस अपना शीश चढ़ा कर...

चला गया जो वीर खींच कर
निज शोणित की रेखा
भारत सीते! बंद रहो तुम
अडिग अक्ष्मण रेखा

भारत की शरहद पर मर जो खींचा अमिट निशानी
खो जायेगा जिस दिन सूरज, सो जायेंगे प्राणी
उसके यश को शून्य कहेगा
जो मुँह खोल न माँगा
हँस-हँस अपना शीश चढ़ा कर...

दुश्मन के सिर फूल चढ़ा दो
लाल खून का पानी
शीश चढ़ाने वालों की भू
है भारत माँ रानी

मेरा कोटि प्राणम उसे है
जो सिर टोल न माँगा
हँस-हँस अपना शीश चढ़ा कर...