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}}श्रीमती रघुवंशीकुमारी का जन्म 1847 ज्येष्ठ शुक्ल सप्तमी को भगवानपुराधीश राजा सूर्य्यभानुसिंह के यहाँ हुआ। आपका विवाह सुलतानपुर जिले में दियरा नामक राज्य के अधिपति राजा रुद्रप्रतापसाहि से हुआ। अवधेवन्द्र प्रतापसाहि, कोलशेलन्द्रपतापसाहि तथा सुरेन्द्रपतापसाहि नाम के तीन पुत्र-रत्न आप को प्राप्त हैं। आजकल, सास और पति से विहीन होने पर, आप राजमाता दियरा कही जाती हैं। | }}श्रीमती रघुवंशीकुमारी का जन्म 1847 ज्येष्ठ शुक्ल सप्तमी को भगवानपुराधीश राजा सूर्य्यभानुसिंह के यहाँ हुआ। आपका विवाह सुलतानपुर जिले में दियरा नामक राज्य के अधिपति राजा रुद्रप्रतापसाहि से हुआ। अवधेवन्द्र प्रतापसाहि, कोलशेलन्द्रपतापसाहि तथा सुरेन्द्रपतापसाहि नाम के तीन पुत्र-रत्न आप को प्राप्त हैं। आजकल, सास और पति से विहीन होने पर, आप राजमाता दियरा कही जाती हैं। | ||
रानी रघुवंशकुमारी की प्रवृत्ति कविता की ओर बाल्यावस्था ही से रही है। अनुकूल परिस्थितियों में आपकी रचना-सम्बन्धी शक्तियों को विकसित होने का अच्छा अवसर मिला। आपने भामिनी-विलास बनिता-बुद्धि-विलास, तथा सूपशास्त्र नामक तीन ग्रंथों की रचना की है। इनकी कविता में एक विशेषता है। लगभग वैसी ही, जैसी श्रीमती गिरिराजकुँवरि की कविता में हैं। श्रीमती गिरिराजकुँवरि की कविता में हमने उनके इस मत का उल्लेख किया था कि वे पति को स्त्री का सांसारिक और श्रीकृष्ण को पारमार्थिक देव मानती थीं। रानी रघुवंशकुमारी पति को इहलोक और परलोक दोनों की सिद्धि का साधन मनाती थीं। वास्तव में साधारण शक्ति-सम्पन्न हमारे समाज को रानी रघुवंशकुमारी द्वारा प्रदर्शित आदर्श ही ग्रहण करना अधिक श्रेयस्कर होगा। | रानी रघुवंशकुमारी की प्रवृत्ति कविता की ओर बाल्यावस्था ही से रही है। अनुकूल परिस्थितियों में आपकी रचना-सम्बन्धी शक्तियों को विकसित होने का अच्छा अवसर मिला। आपने भामिनी-विलास बनिता-बुद्धि-विलास, तथा सूपशास्त्र नामक तीन ग्रंथों की रचना की है। इनकी कविता में एक विशेषता है। लगभग वैसी ही, जैसी श्रीमती गिरिराजकुँवरि की कविता में हैं। श्रीमती गिरिराजकुँवरि की कविता में हमने उनके इस मत का उल्लेख किया था कि वे पति को स्त्री का सांसारिक और श्रीकृष्ण को पारमार्थिक देव मानती थीं। रानी रघुवंशकुमारी पति को इहलोक और परलोक दोनों की सिद्धि का साधन मनाती थीं। वास्तव में साधारण शक्ति-सम्पन्न हमारे समाज को रानी रघुवंशकुमारी द्वारा प्रदर्शित आदर्श ही ग्रहण करना अधिक श्रेयस्कर होगा। |
18:38, 19 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण
श्रीमती रघुवंशीकुमारी का जन्म 1847 ज्येष्ठ शुक्ल सप्तमी को भगवानपुराधीश राजा सूर्य्यभानुसिंह के यहाँ हुआ। आपका विवाह सुलतानपुर जिले में दियरा नामक राज्य के अधिपति राजा रुद्रप्रतापसाहि से हुआ। अवधेवन्द्र प्रतापसाहि, कोलशेलन्द्रपतापसाहि तथा सुरेन्द्रपतापसाहि नाम के तीन पुत्र-रत्न आप को प्राप्त हैं। आजकल, सास और पति से विहीन होने पर, आप राजमाता दियरा कही जाती हैं।रानी रघुवंशकुमारी की प्रवृत्ति कविता की ओर बाल्यावस्था ही से रही है। अनुकूल परिस्थितियों में आपकी रचना-सम्बन्धी शक्तियों को विकसित होने का अच्छा अवसर मिला। आपने भामिनी-विलास बनिता-बुद्धि-विलास, तथा सूपशास्त्र नामक तीन ग्रंथों की रचना की है। इनकी कविता में एक विशेषता है। लगभग वैसी ही, जैसी श्रीमती गिरिराजकुँवरि की कविता में हैं। श्रीमती गिरिराजकुँवरि की कविता में हमने उनके इस मत का उल्लेख किया था कि वे पति को स्त्री का सांसारिक और श्रीकृष्ण को पारमार्थिक देव मानती थीं। रानी रघुवंशकुमारी पति को इहलोक और परलोक दोनों की सिद्धि का साधन मनाती थीं। वास्तव में साधारण शक्ति-सम्पन्न हमारे समाज को रानी रघुवंशकुमारी द्वारा प्रदर्शित आदर्श ही ग्रहण करना अधिक श्रेयस्कर होगा।