भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जिजीविषा / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKRachna |रचनाकार=कविता भट्ट |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem>...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 25: पंक्ति 25:
 
जबकि वह वेश्या सा दिन-रात
 
जबकि वह वेश्या सा दिन-रात
 
अपना तन-मन सुलगाता...   
 
अपना तन-मन सुलगाता...   
 +
 +
</poem>
 
-0-
 
-0-
  

13:19, 28 जनवरी 2019 के समय का अवतरण


समय के समक्ष जब
भिक्षुक हो जाएँ सभी विकल्प
जीवित रखना होता तब
अन्तःप्रज्ञा का ही दृढ़ संकल्प

लक्ष्य निष्ठुर हो जाते हैं जब
रातों में पहाड़ी पगडंडी -से
अपना लहू प्रपंच-मन में भर
जिजीविषा की दियासलाई से
चिमनी को जलाना होता तब
निचोड़ आँखों को स्वयं की
कामनाओं की बाती सुलगाना
जीवन-प्रश्नपत्र के अनिवार्य प्रश्न -सा;

किन्तु फिर भी विकल्पहीन
असफल ही कहलाता
जबकि वह वेश्या सा दिन-रात
अपना तन-मन सुलगाता...

-0-