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"अपना यह 'दूसरापन' / कुंवर नारायण" के अवतरणों में अंतर
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− | कि अब उठो-आओ उड़ें | + | कि अब उठो-आओ उड़ें |
− | बस एक उड़ान भर ही दूर है | + | बस एक उड़ान भर ही दूर है |
− | हमारे पंखों का आकाश। | + | हमारे पंखों का आकाश। |
− | एक फड़फड़ाहट में | + | एक फड़फड़ाहट में |
− | समा जाएगा | + | समा जाएगा |
− | सारी उड़ानों का सारांश! | + | सारी उड़ानों का सारांश! |
− | और फिर भी | + | और फिर भी |
− | बचा रह जाएगा हर एक के लिए | + | बचा रह जाएगा हर एक के लिए |
− | नयी-नयी उड़ानों का | + | नयी-नयी उड़ानों का |
− | उतना ही बड़ा आकाश | + | उतना ही बड़ा आकाश |
− | जैसा मुझे मिला था! | + | जैसा मुझे मिला था! |
− | एक महावन हो जाएगा | + | एक महावन हो जाएगा |
− | मन | + | मन |
− | उसमें एक अन्य ही जीवन होगा | + | उसमें एक अन्य ही जीवन होगा |
− | यह विस्थापन, | + | यह विस्थापन, |
− | कोई दूसरा ही मैं होगा | + | कोई दूसरा ही मैं होगा |
− | अपना यह दूसरापन | + | अपना यह दूसरापन |
− | वन में भी जीवन है | + | वन में भी जीवन है |
− | जैसे जीवन में भी वन! | + | जैसे जीवन में भी वन! |
− | यह पटाक्षेप नहीं है | + | यह पटाक्षेप नहीं है |
केवल दृश्य-परिवर्तन। | केवल दृश्य-परिवर्तन। | ||
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15:42, 26 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
कल सुबह भी खिलेगा
इसी सूरजमुखी खिड़की पर
फूल-सा एक सूर्योदय
फैलेगी घर में
सुगन्ध-सी धूप
चिड़ियों की चहचहाटें
लाएंगी एक निमन्त्रण
कि अब उठो-आओ उड़ें
बस एक उड़ान भर ही दूर है
हमारे पंखों का आकाश।
एक फड़फड़ाहट में
समा जाएगा
सारी उड़ानों का सारांश!
और फिर भी
बचा रह जाएगा हर एक के लिए
नयी-नयी उड़ानों का
उतना ही बड़ा आकाश
जैसा मुझे मिला था!
एक महावन हो जाएगा
मन
उसमें एक अन्य ही जीवन होगा
यह विस्थापन,
कोई दूसरा ही मैं होगा
अपना यह दूसरापन
वन में भी जीवन है
जैसे जीवन में भी वन!
यह पटाक्षेप नहीं है
केवल दृश्य-परिवर्तन।