"आओ बुनेंगे / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | 140 | |
− | + | दीपक की लौ | |
+ | गाल पर ढुलका | ||
+ | जैसे हो आँसू । | ||
+ | 141 | ||
+ | दबी रुलाई | ||
+ | बसी परदेस में | ||
+ | बेटी न आई । | ||
+ | 142 | ||
+ | भाई जोहता | ||
+ | बाट एकटक , न | ||
+ | आई बहना । | ||
+ | 143 | ||
+ | नींद थी आई | ||
+ | सपने में सिसका | ||
+ | पड़ी सुनाई। | ||
+ | 144 | ||
+ | सिसके पिता | ||
+ | सबसे छुपकर | ||
+ | अँधियारे में। | ||
+ | 145 | ||
+ | चलते गए | ||
+ | लुटे-पिटे -से पिता | ||
+ | गलियारे में । | ||
+ | 146 | ||
+ | पता ये चला - | ||
+ | बेटी हुई व्याकुल | ||
+ | हिरनी जैसी । | ||
+ | 147 | ||
+ | दीपक जले | ||
+ | नभ उतरा धरा | ||
+ | मिलता गले । | ||
+ | 148 | ||
+ | अँधेरा डरा | ||
+ | देखकर उजाला | ||
+ | छुपता फिरा । | ||
+ | 149 | ||
+ | रोशनी बसी- | ||
+ | मन नन्हें शिशु की | ||
+ | बिखरी हँसी | ||
+ | 150 | ||
+ | दिया जो जला | ||
+ | था डरा अँधियारा | ||
+ | उजाला खिला | ||
+ | 151 | ||
+ | मन का तम | ||
+ | मिटाते रहे तेरे | ||
+ | मन के दिए । | ||
+ | 152 | ||
+ | दीप जलाओ | ||
+ | जो भटके पथ में | ||
+ | राह दिखाओ । | ||
+ | 153 | ||
+ | प्रेम -दीप से | ||
+ | मन में हैं उजाले | ||
+ | तुम्हीं ने बाले । | ||
+ | 154 | ||
+ | कब था डरा ? | ||
+ | नन्हा -सा दीप यह | ||
+ | नेह से भरा । | ||
+ | 155 | ||
+ | आओ बुनेंगे | ||
+ | उजालों की चादर | ||
+ | भावों से भर । | ||
+ | 156 | ||
+ | दुख-पाहुन | ||
+ | न मन में टिकाओ | ||
+ | दीप जलाओ । | ||
+ | 157 | ||
+ | रौशन घर | ||
+ | बन गया मन्दिर | ||
+ | पूजा के स्वर । | ||
+ | 158 | ||
+ | उस वर्षा में | ||
+ | खूब तैरता है ये | ||
+ | आँगन सारा | ||
+ | 159 | ||
+ | रिश्तो के नाम | ||
+ | गिरवी न रखेंगे | ||
+ | सुबह -शाम । | ||
+ | 16 | ||
+ | मिलेगा प्रेम | ||
+ | तो निभाएँगे हम | ||
+ | सारे ही नेम । | ||
</poem> | </poem> |
04:37, 19 मई 2019 के समय का अवतरण
140
दीपक की लौ
गाल पर ढुलका
जैसे हो आँसू ।
141
दबी रुलाई
बसी परदेस में
बेटी न आई ।
142
भाई जोहता
बाट एकटक , न
आई बहना ।
143
नींद थी आई
सपने में सिसका
पड़ी सुनाई।
144
सिसके पिता
सबसे छुपकर
अँधियारे में।
145
चलते गए
लुटे-पिटे -से पिता
गलियारे में ।
146
पता ये चला -
बेटी हुई व्याकुल
हिरनी जैसी ।
147
दीपक जले
नभ उतरा धरा
मिलता गले ।
148
अँधेरा डरा
देखकर उजाला
छुपता फिरा ।
149
रोशनी बसी-
मन नन्हें शिशु की
बिखरी हँसी
150
दिया जो जला
था डरा अँधियारा
उजाला खिला
151
मन का तम
मिटाते रहे तेरे
मन के दिए ।
152
दीप जलाओ
जो भटके पथ में
राह दिखाओ ।
153
प्रेम -दीप से
मन में हैं उजाले
तुम्हीं ने बाले ।
154
कब था डरा ?
नन्हा -सा दीप यह
नेह से भरा ।
155
आओ बुनेंगे
उजालों की चादर
भावों से भर ।
156
दुख-पाहुन
न मन में टिकाओ
दीप जलाओ ।
157
रौशन घर
बन गया मन्दिर
पूजा के स्वर ।
158
उस वर्षा में
खूब तैरता है ये
आँगन सारा
159
रिश्तो के नाम
गिरवी न रखेंगे
सुबह -शाम ।
16
मिलेगा प्रेम
तो निभाएँगे हम
सारे ही नेम ।