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"मिनिस्टर मंगरू / फणीश्वर नाथ रेणु" के अवतरणों में अंतर

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'कहाँ गायब थे मंगरू?'-किसी ने चुपके से पूछा।
 
'कहाँ गायब थे मंगरू?'-किसी ने चुपके से पूछा।
 
 
वे बोले- यार, गुमनामियाँ जाहिल मिनिस्टर था।
 
वे बोले- यार, गुमनामियाँ जाहिल मिनिस्टर था।
 
 
बताया काम अपने महकमे का तानकर सीना-
 
बताया काम अपने महकमे का तानकर सीना-
 
 
कि मक्खी हाँकता था सबके छोए के कनस्टर का।
 
कि मक्खी हाँकता था सबके छोए के कनस्टर का।
 
  
 
सदा रखते हैं करके नोट सब प्रोग्राम मेरा भी,
 
सदा रखते हैं करके नोट सब प्रोग्राम मेरा भी,
 
 
कि कब सोया रहूंगा औ' कहाँ जलपान खाऊंगा।
 
कि कब सोया रहूंगा औ' कहाँ जलपान खाऊंगा।
 
 
कहाँ 'परमिट' बेचूंगा, कहाँ भाषण हमारा है,
 
कहाँ 'परमिट' बेचूंगा, कहाँ भाषण हमारा है,
 
 
कहाँ पर दीन-दुखियों के लिए आँसू बहाऊंगा।
 
कहाँ पर दीन-दुखियों के लिए आँसू बहाऊंगा।
 
  
 
'सुना है जाँच होगी मामले की?' -पूछते हैं सब
 
'सुना है जाँच होगी मामले की?' -पूछते हैं सब
 
 
ज़रा गम्भीर होकर, मुँह बनाकर बुदबुदाता हूँ!
 
ज़रा गम्भीर होकर, मुँह बनाकर बुदबुदाता हूँ!
 
 
मुझे मालूम हैं कुछ गुर निराले दाग धोने के,
 
मुझे मालूम हैं कुछ गुर निराले दाग धोने के,
 
 
'अंहिसा लाउंड्री' में रोज़ मैं कपड़े धुलाता हूँ।
 
'अंहिसा लाउंड्री' में रोज़ मैं कपड़े धुलाता हूँ।
 
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'''('नई दिशा' के 9 अगस्त, 1949 के अंक में प्रकाशित)
 
'''('नई दिशा' के 9 अगस्त, 1949 के अंक में प्रकाशित)

11:58, 11 अप्रैल 2013 के समय का अवतरण

'कहाँ गायब थे मंगरू?'-किसी ने चुपके से पूछा।
वे बोले- यार, गुमनामियाँ जाहिल मिनिस्टर था।
बताया काम अपने महकमे का तानकर सीना-
कि मक्खी हाँकता था सबके छोए के कनस्टर का।

सदा रखते हैं करके नोट सब प्रोग्राम मेरा भी,
कि कब सोया रहूंगा औ' कहाँ जलपान खाऊंगा।
कहाँ 'परमिट' बेचूंगा, कहाँ भाषण हमारा है,
कहाँ पर दीन-दुखियों के लिए आँसू बहाऊंगा।

'सुना है जाँच होगी मामले की?' -पूछते हैं सब
ज़रा गम्भीर होकर, मुँह बनाकर बुदबुदाता हूँ!
मुझे मालूम हैं कुछ गुर निराले दाग धोने के,
'अंहिसा लाउंड्री' में रोज़ मैं कपड़े धुलाता हूँ।

('नई दिशा' के 9 अगस्त, 1949 के अंक में प्रकाशित)