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"हुड़क उठी / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
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बद्दुआएँ जो बाँटें | बद्दुआएँ जो बाँटें | ||
दग्ध ही होंगे। | दग्ध ही होंगे। | ||
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+ | पलकें चूमें | ||
+ | वातायन से झाँके | ||
+ | भोर किरन। | ||
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+ | पुण्य सलिला | ||
+ | होगी जाह्नवी माना | ||
+ | तुम भी तो हो ! | ||
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+ | निर्मलमना! | ||
+ | रूप का हो सागर | ||
+ | भाव- ऋचा हो। | ||
+ | 115 | ||
+ | भाव-सृष्टि हो | ||
+ | सुधा -वृष्टि करती | ||
+ | मन में बसो ! | ||
+ | 116 | ||
+ | प्राणों की लय | ||
+ | जीवन संगीत हो | ||
+ | मनमीत हो। | ||
+ | 117 | ||
+ | चन्दनमन | ||
+ | मलयानिल साँसें | ||
+ | अंक लिपटें। | ||
+ | 118 | ||
+ | नत पलकें | ||
+ | रूप पिए चाँदनी | ||
+ | चूम अलकें। | ||
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06:21, 2 अक्टूबर 2019 के समय का अवतरण
105
हुड़क उठी
पिछले जनमों की
रोके न रुकी।
106
बिछड़े तुम
कटी पतंग हम
किधर उड़ें?
107
प्राण -पथिक
चलकर ये हारे
मंज़िल खोई।
108
सूली टँगे थे
हम जी न सके
मरके जिए।
109
साँसें अटकीं
रूह तक भटकी
मरु-विस्तार।
110
शिक़वा भी क्या
क़ातिल अपने हों
किसे दोष दें!
111
चैन न मिले
बद्दुआएँ जो बाँटें
दग्ध ही होंगे।
112
पलकें चूमें
वातायन से झाँके
भोर किरन।
113
पुण्य सलिला
होगी जाह्नवी माना
तुम भी तो हो !
114
निर्मलमना!
रूप का हो सागर
भाव- ऋचा हो।
115
भाव-सृष्टि हो
सुधा -वृष्टि करती
मन में बसो !
116
प्राणों की लय
जीवन संगीत हो
मनमीत हो।
117
चन्दनमन
मलयानिल साँसें
अंक लिपटें।
118
नत पलकें
रूप पिए चाँदनी
चूम अलकें।