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"आग और ढलान / प्रमोद कौंसवाल" के अवतरणों में अंतर
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तुम क्या लेकर आए | तुम क्या लेकर आए | ||
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पानी आसमान अंगोरा | पानी आसमान अंगोरा | ||
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आए हो हिमाचल | आए हो हिमाचल | ||
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कुछ तो लाए होते इन सबको छोड़कर | कुछ तो लाए होते इन सबको छोड़कर | ||
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जवानी के दिनों की स्मृतियों को | जवानी के दिनों की स्मृतियों को | ||
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जहाँ एक पहाड़ी नौजवान | जहाँ एक पहाड़ी नौजवान | ||
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पढ़ा-लिखा रहा है पहाड़ी बच्चों को | पढ़ा-लिखा रहा है पहाड़ी बच्चों को | ||
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तुम्हारे चश्मे पर हरे रंग की स्मृतियाँ | तुम्हारे चश्मे पर हरे रंग की स्मृतियाँ | ||
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तरंगों की तरह फैलती नहीं दिखती अगर | तरंगों की तरह फैलती नहीं दिखती अगर | ||
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तुम इस रंग को भींच लाते | तुम इस रंग को भींच लाते | ||
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रेखा की मुठ्ठियों से | रेखा की मुठ्ठियों से | ||
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तुम्हारे घर को | तुम्हारे घर को | ||
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एक रास्ता ऐसा तो जाता ही होगा | एक रास्ता ऐसा तो जाता ही होगा | ||
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जहाँ पुराने पीपल | जहाँ पुराने पीपल | ||
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और लैंटिन की झाड़ियों के सूखे पत्ते गिरे वहाँ से | और लैंटिन की झाड़ियों के सूखे पत्ते गिरे वहाँ से | ||
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पुराने किसी पत्थर में बैठकर | पुराने किसी पत्थर में बैठकर | ||
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तुमने जो भी सोचा | तुमने जो भी सोचा | ||
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हमसफ़र की तरह | हमसफ़र की तरह | ||
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साझा करो | साझा करो | ||
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बताओ वह आदमी | बताओ वह आदमी | ||
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जो तुम ख़ुद थे ढलान से गिरते हुए | जो तुम ख़ुद थे ढलान से गिरते हुए | ||
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आए तो आए बचकर कैसे | आए तो आए बचकर कैसे | ||
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09:30, 25 अक्टूबर 2011 के समय का अवतरण
तुम क्या लेकर आए
पानी आसमान अंगोरा
आए हो हिमाचल
कुछ तो लाए होते इन सबको छोड़कर
जवानी के दिनों की स्मृतियों को
जहाँ एक पहाड़ी नौजवान
पढ़ा-लिखा रहा है पहाड़ी बच्चों को
तुम्हारे चश्मे पर हरे रंग की स्मृतियाँ
तरंगों की तरह फैलती नहीं दिखती अगर
तुम इस रंग को भींच लाते
रेखा की मुठ्ठियों से
तुम्हारे घर को
एक रास्ता ऐसा तो जाता ही होगा
जहाँ पुराने पीपल
और लैंटिन की झाड़ियों के सूखे पत्ते गिरे वहाँ से
पुराने किसी पत्थर में बैठकर
तुमने जो भी सोचा
हमसफ़र की तरह
साझा करो
बताओ वह आदमी
जो तुम ख़ुद थे ढलान से गिरते हुए
आए तो आए बचकर कैसे