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"माँ शारदे ! तुमको नमन / राहुल शिवाय" के अवतरणों में अंतर

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लाज प्रार्थना की रख लो माँ
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श्वेतवर्णा ! भारती ! माँ गोमती ! माँ श्वेतानन!
हंसवाहिनी जग को वर दो l
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ज्ञानमुद्रा ! वरप्रदा ! माँ शारदे ! तुमको नमन l  
  
छाया जग पर तम का बादल,  
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मैं अकिंचन, निरालम्बी सामने कबसे खड़ा,  
मन में जाग उठे हैं रिपु दल,
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माँ मुझे तुम दो सहारा, मैं चरण में हूँ पड़ा,  
फैला लोभ, अहम औ लालच-
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सर्वव्यापी शक्ति हो माँ, तुम धरा तुम ही गगन।
मानवता लगती है निर्बल l
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ज्ञान दीप, माँ! मन में भरकर-
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ज्योतिर्मय सारा जग कर दो l
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क्षोभ, निराशा दुख सुदूर हो,
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तुम कला साहित्य और संगीत की हो चेतना,  
जागे अहम न हृदय क्रूर हो,  
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देवता भी बनके साधक करते हैं आराधना,  
मन-मन में विश्वास भरो वह-
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ज्ञान का आशीश दो माँ, रख सकूँ नि:स्वार्थ मन।
पापी का हर दम्भ चूर हो l 
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आलोकिता कर दो कण-कण माँ!-
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नवल चेतना सबमें भर दो l
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मन-मन हो संगीत प्रेम का,  
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ज्ञान बिन मैं माँ अधूरा, मुझको विद्या दान दो,  
मिलन भरा हो गीत प्रेम का,  
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भाव, पिंगल, शब्द भरकर गीत में नवप्राण दो,  
जो चाहे वह मीत मिले माँ!-
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माँ तुम्हारी ही कृपा से गा रहा हूँ मैं भजन l
ऐसा कर दो रीत प्रेम का l
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कलुष-भेद हर दो मन से माँ!-
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प्रेमिल निर्झर जग को स्वर दो l
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17:43, 18 फ़रवरी 2020 के समय का अवतरण

श्वेतवर्णा ! भारती ! माँ गोमती ! माँ श्वेतानन!
ज्ञानमुद्रा ! वरप्रदा ! माँ शारदे ! तुमको नमन l

मैं अकिंचन, निरालम्बी सामने कबसे खड़ा,
माँ मुझे तुम दो सहारा, मैं चरण में हूँ पड़ा,
सर्वव्यापी शक्ति हो माँ, तुम धरा तुम ही गगन।

तुम कला साहित्य और संगीत की हो चेतना,
देवता भी बनके साधक करते हैं आराधना,
ज्ञान का आशीश दो माँ, रख सकूँ नि:स्वार्थ मन।

ज्ञान बिन मैं माँ अधूरा, मुझको विद्या दान दो,
भाव, पिंगल, शब्द भरकर गीत में नवप्राण दो,
माँ तुम्हारी ही कृपा से गा रहा हूँ मैं भजन l