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"और सुबह है / वेणु गोपाल" के अवतरणों में अंतर

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खतरे पारदर्शी होते हैं।
 
खूबसूरत।
 
अपने पार भविष्य दिखाते हुए।
 
  
जैसे छोटे से गुदाज बदन वाली बच्ची
+
हम सूरज के भरोसे मारे गए
किसी जंगली जानवर का मुखौटा लगाए
+
और
धम्म से आ कूदे हमारे आगे
+
सूरज
और हम डरें नहीं। बल्कि देख लें
+
घड़ी के।
उसके बचपन के पार
+
एक जवान खुशी
+
  
और गोद में उठा लें उसे।
+
जो बंद इसलिए पड़ी है
 +
कि हम चाबी लगाना भूल गए थे
  
ऐसे ही कुछ होते हैं खतरे।
+
और
अगर डरें तो खतरे और अगर
+
सुबह है
नहीं तो भविष्य दिखाते
+
कि हो ही नहीं पा रही है।
रंगीन पारदर्शी शीशे के टुकड़े।
+

22:46, 3 सितम्बर 2008 के समय का अवतरण


हम सूरज के भरोसे मारे गए
और
सूरज
घड़ी के।

जो बंद इसलिए पड़ी है
कि हम चाबी लगाना भूल गए थे

और
सुबह है
कि हो ही नहीं पा रही है।