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"प्यास और पानी / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर

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व्यक्ति तय कर लेता है पीढ़ियों का सफर।
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वह भटकता है गाँव से नगर औ महानगर;
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प्रसंग में न वामन है; न ही बली की मजबूरी;
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है केवल प्यास-भूख से पानी-रोटी की दूरी।
  
 
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06:07, 27 जून 2020 के समय का अवतरण

 प्यास और पानी के बीच; है जो फासला-
यही है जिजीविषा- जीने का सिलसिला।

भूख से रोटी की दूरी तय करने में अक्सर-
व्यक्ति तय कर लेता है पीढ़ियों का सफर।

वह भटकता है गाँव से नगर औ महानगर;
प्यास-भूख भीरू को भी बना देती; निडर।

माप सकता है वह कई लोकों को डग भर
वामन के जैसे ही नन्हे; किन्तु दृढ़ पग-धर।

प्रसंग में न वामन है; न ही बली की मजबूरी;
है केवल प्यास-भूख से पानी-रोटी की दूरी।