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"वो सराबों के समुंदर में उतर जाता है / प्रफुल्ल कुमार परवेज़" के अवतरणों में अंतर
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11:11, 28 सितम्बर 2008 के समय का अवतरण
वो सराबों के समंदर में उतर जाता है
गाँव को छोड़ के जब कोई शहर जाता है
ऐसा लगता है कि हारा हो जुए में दिन भर
आदमी शाम को जब लौट के घर जाता है
लूट ले कोई सरे आम तो हैरत कैसी
जब कि हर शख़्स गवाही से मुकर जाता है
आज के दौर से जब कोई सुलह करता है
उसके अंदर का जो इन्सान है मर जाता है
अब तो करता नहीं ख़ुद से भी दुआ और सलाम
आदमी अपने बराबर से गुज़र जाता है.