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(शम्भु चौधरी)
 
 
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== '''भोपाल तीन काल''' ==<br />&nbsp;<br />
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    -1-<br />
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चलती ट्रेनों में,<br />
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जिन्दा लाशों को ढोनेवाला,<br />
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ऎ कब्रगाह- भोपाल!<br />
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तुम्हारी आवाज कहाँ खो गई?<br />
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जगो और बता दो,<br />
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इतिहास को |<br />
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तुमने हमें चैन से सुलाया है,<br />
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हम तुम्हें चैन से न सोने देगें।<br />
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रात के अंधेरे में जलने वाले,<br />
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ऎ श्मशान भो-पा-ल....<br />
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जगो और जला दो<br />
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उस नापाक इरादों को<br />
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जिसने तुम्हें न सोने दिया,<br />
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उसे चैन से सुला दो।  <br />
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    -2-<br />
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वह भीड़ नहीं - भेड़ें थी ।<br />
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कुछ जमीन पर सोये सांसे गिन रही थी।<br />
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दोस्तों का रोना भी नसीब न था।<br />
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चांडाल नृत्य करता शहर,<br />
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ऎ दुनिया के लोग;<br />
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अपना कब्रगाह या श्मशान यहाँ बना लो।<br />
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अगर कुछ न समझ में न आये तो,<br />
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एक गैसयंत्र ओर यहाँ बना लो।<br />
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मुझे कोई अफसोस नहीं,<br />
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हम तो पहले से ही आदी थे इस जहर के,<br />
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फर्क सिर्फ इतना था,<br />
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कल तक हम चलते थे, आज दौड़ने लगे।<br />
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कफ़न तो मिला था,<br />
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पर ये क्या पता था?<br />
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एक ही कफ़न से दस मुर्दे जलेगें,<br />
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जलने से पहले बुझा दिये जायेगें,<br />
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और फिर<br />
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दफ़ना दिये जायेगें।<br />
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+
 
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    -3-<br />
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भागती - दौड़ती - चिल्लाती आवाज...<br />
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कुछ हवाओं में, कुछ पावों तले,<br />
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कुछ दब गयी,<br />
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दीवारों के बीच।<br />
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कुछ नींद की गहराइयों में,<br />
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कुछ मौत की तन्हाइयों में खो गई।<br />
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कुछ माँ के पेट में,<br />
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कुछ कागजों में,<br />
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कुछ अदालतों में गूँगी हो गयी।<br />
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गुजारिश तुमसे है दानव,<br />
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तुम न खो देना मुझको,<br />
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जहाँ रहते हैं म मानव। <br />
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'''-शम्भु चौधरी, एफ.डी. - 453/2, साल्टलेक सिटी, कोलकाता - 700106<br />
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email; ehindisahitya@gmail.com'''<br />
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16:34, 10 अक्टूबर 2008 के समय का अवतरण