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"मैं शीशे की तरह गर टूट जाता / ज्ञान प्रकाश विवेक" के अवतरणों में अंतर

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अगर मैं धूप के सौदागरों से डर जाता
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मैं शीशे की तरह गर टूट जाता
तो अपनी बर्फ़ उठाकर बता किधर जाता
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वो पलकों से मेरी किरचें उठाता
  
पकड़ के छोड़ दिया मैंने एक जुगनू को
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उसे भी तैरना आता नहीं था
मैं उससे खेलता रहता तो वो बिखर जाता
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मुझे वो डूबने से क्या बचाता
  
मुझे यक़ीन था कि चोर लौट आएगा
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मेरी मजबूरियाँ हैं दोस्त वरना
फटी क़मीज़ मेरी ले वो किधर जाता
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किसी के सामने क्यूँ सर झुकाता
  
अगर मैं उसको बता कि मैं हूँ शीशे का
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ये दस्ताने तेरे अच्छे हैं लेकिन
मेरा रक़ीब मुझे चूर-चूर कर जाता
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तू मुझसे हाथ वैसे ही  मिलाता
  
तमाम रात भिखारी भटकता फिरता रहा
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खड़ा हूँ साइकिल लेके पुरानी
जो होता उसका कोई घर तो वो भी घर जाता
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नये बाज़ार में डरता-डराता
  
तमाम  उम्र  बनाई  हैं तूने  बन्दूकें
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अगर होता मैं इक छोटा-सा बालक
अगर खिलौने बनाता तो कुछ सँवर जाता.
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तो फिर कागज़ के तैय्यारे बनाता
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वो रिश्तों को कशीदा कर गया है
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मिला है मुझसे लेकिन मुँह चिढ़ाता.
 
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19:11, 11 अक्टूबर 2008 के समय का अवतरण

 
मैं शीशे की तरह गर टूट जाता
वो पलकों से मेरी किरचें उठाता

उसे भी तैरना आता नहीं था
मुझे वो डूबने से क्या बचाता

मेरी मजबूरियाँ हैं दोस्त वरना
किसी के सामने क्यूँ सर झुकाता

ये दस्ताने तेरे अच्छे हैं लेकिन
तू मुझसे हाथ वैसे ही मिलाता

खड़ा हूँ साइकिल लेके पुरानी
नये बाज़ार में डरता-डराता

अगर होता मैं इक छोटा-सा बालक
तो फिर कागज़ के तैय्यारे बनाता

वो रिश्तों को कशीदा कर गया है
मिला है मुझसे लेकिन मुँह चिढ़ाता.