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अपड़ौ कि इ देईं | अपड़ौ कि इ देईं | ||
सौंकि धौर दौं। | सौंकि धौर दौं। | ||
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15:07, 3 मई 2021 के समय का अवतरण
1
कड़वी बात
दे मन पर घाव
कभी न भरे।
कड़ि बात जु
द्यो मन परैं घौ वु
कबि नि भर्दा
2
कभी तो लौट
देख आकर ज़रा
वहीं है खड़े ।
कबि त बौड़
देख दौं ऐ क जरा
उखिम खड़ू
3
नि;शब्द खड़ी
तारों में ढूँढती हूँ
कहाँ हो तुम !
चुप्प छौं खड़ू
गैंणों माँ खोजदु छौं
कख छैं तुम
4
चंद बादल
अनगिनत प्यासे
है हाहाकार ।
कुछ बादळ
बिगणति तिस्वाळा
ह्वे हाहाकार।
5
आओ दो पल
बैठेंगें हम पास
जीवनसाथी ।
औ दौं द्वी घड़ी
बैठला दग्ड़ी हम
घौड़ा र ज्वाड़ा
6
कम जीवन
साथ और भी कम
जियो जी भर।
कम ज्यूँण च
दग्ड़ू हौर बि कम
जींण जी भरि
7
जिंदगी सारी
खुशनुमा बहुत
बाँहे फैलाओ ।
जिंदगि सैडी
राजी-खुसी च भौत
अंग्वाळ फैलौ
8
ये तारे ऐसे
चाँदनी की चुनरी
टँके हों जैसे
यु गैंणा इन
जुनाळि चुन्नी माँ
टाँग्याँ हों जन
9
चिड़िया -चोंच
दबा रही तिनका
खोजे ठिकाना ।
प्वथलि-चोंच
दबौणि तृणु तैंईँ
ख्वज्णि ठिकाणु।
10
मन व्यथित
‘मुस्कान भी है झूठी’-
आँसू कहते ।
मन दुख्यारु
मुल्ल हैंसी बि झूटि
आँसु बुलणा।
11
भोर परोसे
सुंदर- सा सपना
सूरज- थाली।
बिन्सरी धारु
सुन्दर सिइ स्वीणू
सुरजै थाळी ।
12
दर्द विशेष
अपनों की है देन
रख सँभाल ।
पिड़ा खास च
अपड़ौ कि इ देईं
सौंकि धौर दौं।