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"ठक बहादुर माझी / प्रदीप त्रिपाठी" के अवतरणों में अंतर

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वे बोलते हैं अब देह की भाषा में
 
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अपनी भाषा को बोलने वाले अंतिम व्यक्ति थे
 
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थक बहादुर के साथ
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दुनिया की एक भाषा भी चुपचाप चली गई
 
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चला गया थोड़ा सा पहाड़
 
चला गया थोड़ा सा पहाड़

16:16, 22 जून 2022 के समय का अवतरण

पुरखों ने बतियाना बंद कर दिया है
वे बोलते हैं अब देह की भाषा में

ठक बहादुर माझी
अपनी भाषा को बोलने वाले अंतिम व्यक्ति थे

ठक बहादुर के साथ
दुनिया की एक भाषा भी चुपचाप चली गई
चला गया थोड़ा सा पहाड़
थोड़ी सी नदी
थोड़े से नमक के साथ
चला गया जीवन का शोरगुल भी।

देखते-देखते
चली गई दुनिया के भूगोल से एक भाषा की आत्मा

चले गए पुरखे-पुरनिया
अब देह की भाषा भी चली गई उनके साथ

मैं भाषा की अदालत में खड़ा होकर
माफी मांगता हूं

किसी भाषा के प्रति श्रद्धांजलि व्यक्त करना
हमारे समय का सबसे बड़ा अपराध है।